रीत को गिरने न देंगे।।

 रीत को गिरने न देंगे।।

आधुनिकता की लहर में बह चले चाहे किनारे
किन्तु भावों के समर में रीत को गिरने न देंगे।।

मन के भावों को कहे जो शब्द वो प्रवाहमय है
आस का अहसास है वो गान का निर्झर निलय है
तान मुरली की मधुर है रास है संगीत है वो
भावों की अभिव्यक्ति है प्रीत का अनुपम विलय है
शब्द के संसार से अनुगीत को गिरने न देंगे
आज भावों के समर में रीत को गिरने न देंगे।।

पंछियों ने तान देकर गीत का आँगन सजाया
आज ऋतुओं ने मचलकर प्रीत का मधुगीत गाया
वेदनायें मिट गईं सब अवसाद के बादल छँटे
शब्द का सानिध्य पाकर मौन ने मधुमास गाया
मौन मन के भाव से मधुगीत को गिरने न देंगे
आज भावों के समर में रीत को गिरने न देंगे।।

गीत मन के भाव सारे और जीवन आचरण हैं
सत्य हैं सौंदर्य हैं ये संहिता के अवतरण हैं
गीत हैं ये वेद मन के कल्पनाएं उपनिषद हैं
पंक्ति बन जो सज रहे हैं गीत जीवन का वरण हैं
मुक्त हों श्रृंगार चाहें गीत को गिरने न देंगे
आज भावों के समर में रीत को गिरने न देंगे।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23मार्च, 2023

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