चाँद पकड़ कर ले आता।
काश कभी चंदा के रथ तक मेरे हाथ पहुँच पाते
काश सितारों के आँगन तक मेरे सपने जा पाते
काश पलक कोरों को सुख सपनों से नहला पाता
यदि ये संभव होता मुझसे चाँद पकड़ कर ले आता।।
लिखता मन के गीत सुनहरे भावों को जो सुख देतीं
ऐसे शब्द पिरोता उनमें सारे दुख जो हर लेती
शब्दों के गुलशन से कलियाँ चुनता मन को बहलाता
यदि ये संभव होता मुझसे चाँद पकड़ कर ले आता।।
जुगनू से बातें करता तारों से मैं पंथ सजाता
रात अँधेरी चौखट पर उम्मीदों के दीप जलाता
जिन पलकों के सपने वंचित उन पलकों को सहलाता
यदि ये संभव होता मुझसे चाँद पकड़ कर ले आता।।
दूध भात की एक कटोरी दादी-नानी का आँचल
एक निवाला हाथों से खाने को मन अब भी पागल
तुतलाती बोली जब सुनता तारों का मन ललचाता
यदि ये संभव होता मुझसे चाँद पकड़ कर ले आता।।
इक-इक पल से मोती चुनता गुहता यादों की माला
रखता उनको कहीं छुपाकर मन के बीच बना आला
सपने नयन द्वार जब आते माला उनको पहनाता
यदि ये संभव होता मुझसे चाँद पकड़ कर ले आता।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
15मार्च, 2023
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