अपने मन में प्रेम की तू कश्तियाँ उतार ले
चार पल की जिन्दगी है हँस के तू गुजार ले
कौन जाने कंठ में कब शब्द का घट शून्य हो
शब्द के प्रवाह में खुद को पार तू उतार ले
भावों के गाँव से तू, कुछ पंक्तियाँ उधार ले।।
ले आये क्या यहाँ जो छूटने का गम तुम्हें
क्या रहा यहाँ हमेशा टूटने का गम तुम्हें
कौन जाने कब भरे कब अंक जाने शून्य हो
इस शून्य के प्रभाव में खुद स्वयं को विचार ले
भावों के गाँव से तू, कुछ पंक्तियाँ उधार ले।।
कब जाने छोड़ दे कहाँ जिंदगी ये साथ भी
छूट कर बिछड़ न जाये राहों में कहीं कोई
हँस रही है जो नजर न जाने कब वो शून्य हो
मौन मन नहीं रहे फिर साँसों में श्रृंगार ले
भावों के गाँव से तू, कुछ पंक्तियाँ उधार ले।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
21मार्च, 2023
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