हो संभव साथी बन जाना।।
मेरे मन के मौन सफर में, हो संभव साथी बन जाना।।
शांत अचेतन मन में जब तुम्हारे होने का भान उठे
सांध्य क्षितिज सिमटे आँचल में जब अपनेपन का गान उठे
शब्द सिमट अधरों पर आयें तब उनकी प्रति ध्वनि बन जाना
मेरे मन के मौन सफर में, हो संभव साथी बन जाना।।
सर्द रात जब चंदा सिमटे जब तारों के अरमान जगे
जब साँसों के मद्धम लौ पर अरमानों के मधुमास जगे
तब मेरे एकाकीपन में आकर नव दीप जला जाना
मेरे मन के मौन सफर में, हो संभव साथी बन जाना।।
जब पीड़ा की मौन तपिश में अंतर्मन ये उलझा जाये
मधु स्मृतियाँ जब स्वयं पथिक बन राहों में उलझी जायें
मधु स्मृतियों को पुष्पित कर दे वो नूतन पंथ सजा जाना
मेरे मन के मौन सफर में, हो संभव साथी बन जाना।।
जीवन की गोधूली में जब साँसों की डोरी मद्धम हो
धुँधली-धुँधली बेला में जब रिश्तों की डोरी मद्धम हो
तब रिश्तों की डोर थामना अरु नूतन राह दिखा जाना
मेरे मन के मौन सफर में, हो संभव साथी बन जाना।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
27मार्च, 2023
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