मन की बातें।
पृष्ठों पर कुछ भाव सजा अपने मन की कह लेता हूँ।।
मर्यादा की खड़ी लकीरें मेरे मन को भाती हैं
अवध धाम की सोंधी खुशबू छन-छन जिनसे आती है
आदि संस्कृति का मैं पूजक नीति धर्म का पालक हूँ
माँ गंगा की गोद पल रहा मैं नन्हा सा बालक हूँ।।
अवध निवासी भक्त राम का हँसता हूँ कह लेता हूँ
पृष्ठों पर कुछ भाव सजा अपने मन की कह लेता हूँ।।
काशी की गलियों में बीता बचपन यौवन यहीं खिला
शिक्षा संस्कृति और सभ्यता संस्कारों का संग मिला
जिसने दिया ज्ञान को जीवन जिसकी माटी है चंदन
देव, दैत्य औ गन्धर्वों की वाणी में जिसका वंदन।।
उसी सभ्यता नगरी की धूल माथ मैं रख लेता हूँ
पृष्ठों पर कुछ भाव सजा अपने मन की कह लेता हूँ।।
लिखे भाव जो मन को भाए जिसने मन को मान दिया
कंटक हो या पुष्प पंथ के सबको है सम्मान दिया
नहीं चाहता हूँ जग से केवल अपने मन की पाऊँ
लिखूँ भाव सब जन मानस के गीतों में उसको गाऊँ।।
शब्दों के कुछ पुष्प उठा श्रेष्ठ चरण में रख देता हूँ
पृष्ठों पर कुछ भाव सजा अपने मन की कह लेता हूँ।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
13मार्च, 2023
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