आपके नूर से

आपके नूर से

आपको देख कर आपके नूर से 
लिख रहे हैं गजल आपके नूर से

एक पल में सदी जी लिए उस घड़ी
जिस घड़ी हम मिले आपके नूर से

उम्र अँधियारों में ही भटकती मेरी
राह मुझको मिली आपके नूर से

आशिकी कब यहाँ रास आयी मुझे
चाह जिंदा रही आपके नूर से

दवा की मुझे अब जरूरत नहीं
दर्द ही है दवा आपके नूर से

बंद हैं रास्ते मैकदे के सभी
पी रहे हैं सभी आपके नूर से

" देव " कैसे कहें उम्र ढल जाएगी
उम्र रोशन है जब आपके नूर से

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       30 मार्च, 2024

प्रिय तुम्हारे मृदुल स्वरों में मैंने अपनापन पाया है

प्रिय तुम्हारे मृदुल स्वरों में मैंने अपनापन पाया है

रोमांचित मन प्राण हुआ है, अधरों से अमृत छलका है।
नयनों के स्नेहिल कोरों से, सपनों का मधुरस छलका है।
पुष्पित मन के भाव हुए हैं, दूर हुआ मन का अँधियारा।
गुंजित मन के गीत हुए हैं, या है मीरा का इकतारा।

स्नेहिल गीतों के भावों की, अंतस पर पावन छाया है
प्रिय तुम्हारे मृदुल स्वरों में, मैंने अपनापन पाया है।।

छँटे सभी शंका के बादल, आहों को विश्वास दिया है।
अंतस का हर कोना महका, साँसों ने मधुमास जिया है।
हमने अपने मन के भीतर, है पाया मृदु अहसास प्रिये।
छँटे धुंध के काले साये, है पाया तुमको पास प्रिये।

मेरे मन के हृदयाँगन ने, तुमसे ही गायन पाया है।
प्रिय तुम्हारे मृदुल स्वरों में, मैंने अपनापन पाया है।।

आह्लादित मन उपवन सारा, जब भेजे भँवरों ने प्रस्ताव।
गीतों में आमंत्रण पाकर, सब दूर हुए मन के दुर्भाव।
मेरे मन के रिक्त कोष ने, पाया मधु का भंडार प्रिये।
सूखे पतझड़ के मौसम में, पाया बाहों का हार प्रिये।

पोर-पोर रोमांचित है यूँ, चाहत का सावन आया है।
प्रिय तुम्हारे मृदुल स्वरों में, मैंने अपनापन पाया है।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        30 मार्च, 2024

लहरों का गीत

लहरों का गीत

जीवन के हर मूल बिंदु पे,
मधुमित सुरभित हो संसार।
झर-झर-झर निर्झर सम पुलकित,
लहरें करतीं हैं मनुहार।

राग अमर भावों में भरती,
भरती मधु घट सा अनुराग।
निशा दीप से जगमग होए,
भींगे दिवस बने मन फाग।
तन उपवन मन कुसुमित होए,
हरषि सुरभि हो मन संसार।

पग-पग पथ जगमग-जगमग हो,
पूर्ण मनोरथ का हो नाद।
सहज भाव आनंदित मन से,
पथ से पथ का हो संवाद।
विजय पंथ में नवजीवन भर,
पथिक पंथ का हो विस्तार।

अश्रु सिंधु से पूजित करता,
देता जीवन को मधु राग।
कंटक पथ भी पुण्य बने तब,
सजे कण्ठ में जब नव राग।
अनुरंजित भावों से सज्जित,
रखती मन वीणा के तार।

मुक्त कंठ से कहती कविता,
देती सपनों का उपहार।
झिलमिल ज्योति पुंज से सिंचित,
करती नयनों का उद्धार।
जीवन का हर पृष्ठ सजाकर,
देती कविता को आधार।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28 मार्च, 2024







गीत पुरानी यादों वाले साथ अभी भी चलते हैं

गीत पुरानी यादों वाले साथ अभी भी चलते हैं

छायावादी गीत अभी तक हृदय पटल पर अंकित हैं,
श्रेष्ठ कल्पना की लहरों से भाव हृदय के सिंचित हैं।
मूर्त अल्पना के विंबों से भाव निखरकर ढलते हैं,
गीत पुरानी यादों वाले साथ अभी भी चलते हैं।

कोमल भावों की मृदुल छुअन अब भी मन ललचाती है,
वनिताओं की मधुर कामना भावों को मदमाती है।
कहीं अनसजे अनुमानों के भाव हृदय में पलते हैं,
गीत पुरानी यादों वाले साथ अभी भी चलते हैं

बदले भाव छंद हैं बदले गीतों ने नवरूप लिया,
आहों से अनुमोदन पाकर साँसों को नवरूप दिया।
मुदित मगन मन मोहित होकर मनुहारों में मिलते हैं,
गीत पुरानी यादों वाले साथ अभी भी चलते हैं

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        25 मार्च, 2024

जा रे कागा मेरे मन के गीत पिया तक ले जाओ

जा रे कागा मेरे मन के गीत पिया तक ले जाओ

बीते कितने फाग सुहाने कुछ रंग न मुझको भाया,
नहीं डाकिया आया कोई और न संदेशा आया।
बिन साजन फागुन ना भाये ये जा उनको बतलाओ,
जा रे कागा मेरे मन के गीत पिया तक ले जाओ।

कब तक झूठे सपनों से मैं पलकों का आँगन लीपूँ,
कब तक अंतस के आँगन में मैं रेख पिया के खींचूँ।
खो ना जाये धीरज मन का आ कर के आस जगाओ,
जा रे कागा मेरे मन के गीत पिया तक ले जाओ।

बरसों-बरसों गाँव चले हैं शहर पास ले आने को,
कितने फागुन कितने सावन तरसे साथ मनाने को।
इस फ़ागुन में अपने संग-संग उनको भी ले आओ,
जा रे कागा मेरे मन के गीत पिया तक ले जाओ

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        24 मार्च, 2024

कोर के अश्रु भी मुस्कुराने लगे

कोर के अश्रु भी मुस्कुराने लगे

पीर को जब मिला आसरा नेह का
कोर के अश्रु भी मुस्कुराने लगे।

साँस भी ले न पाती यहाँ जिंदगी,
आस को भी यहाँ सहारा न होता।
घुटती बेचैनियों में हर बन्दगी
उम्मीद का एक इशारा न होता।

आस को जब मिला आसरा नेह का,
नैन के स्वप्न भी मुस्कुराने लगे।

तोड़ पनघट किनारे लहर मुड़ गयी,
नाव मँझधार में राह तकने लगी।
बीच पतवार ने जब सहारा दिया,
तेज मँझधार में नाव चलने लगी।

नाँव को जब मिला आस पतवार का,
तेज मँझधार भी साथ आने लगे।

समय के अंक से मौन पल जब गिरा,
सदियों तक रास्ते छटपटाते रहे।
राह को जब मिला दीप का आसरा,
दूर तक दीप से जगमगाते रहे।

रात को जब मिला आसरा दीप का,
दूर जो राह थे पास आने लगे।
पीर को जब मिला आसरा नेह का
कोर के अश्रु भी मुस्कुराने लगे।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       19 मार्च, 2024
        

छले जा रहे हैं

 छले जा रहे हैं

झूठी मोहब्बत का अहसास झूठा उजाले ही अब तो छले जा रहे हैं
करें क्या शिकायत गैरों की बोलो अपनों के हाथों छले जा रहे हैं

बुझा दो चिराग ए मोहब्बत दिलों से कि  इनकी किसी को जरूरत नहीं है
फरेबी उजालों ने ऐसा छला है के देखा जिधर दिलजले जा रहे हैं

ये मुहब्बत हमें रास आयी नहीं या इस राह के हम ही काबिल नहीं थे
कि गुजरे मोहब्बत की जब भी गली से धोखे ही दिल को मिले जा रहे हैं

प्याले उन्हीं को यहाँ रास आते कि मय से मोहब्बत जिन्हें हो गयी हो
प्याले को पूजा रही प्यास जब तक फेंक फिर " देव " देखो चले जा रहे हैं

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        17 मार्च, 2024



नेह की अभिव्यक्तियाँ

नेह की अभिव्यक्तियाँ

शब्द के अनुरोध को सब आज भूली पँक्तियाँ
हाय करे क्या काम आये जब न कोई युक्तियाँ

आज रोया आसमां भी हाल सारा देखकर
दूर आँचल से धरा के जब हो रहीं थीं वृत्तियाँ

क्या कहूँ है कौन रिश्ता दरमियाँ दो जिंदगी के
हो रही हों क्षीड मन की जब वो सारी शुद्धियाँ

आज दीवारें भी छिपकर बात सुनती हैं यहाँ पर
दूर मन से जब हुईं हैं विश्वास की प्रवृत्तियाँ

पेड़ की उस शाख से अब " देव " रिश्ता क्या टुटेगा
धमनियों में बह रही जब नेह की अभिव्यक्तियाँ

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       16 मार्च, 2024

गीत ये गुमसुम रहें ना आ चलो हम गुनगुनाएं।

गीत ये गुमसुम रहें ना आ चलो हम गुनगुनाएं

है हवा का गीत मद्धम चाँदनी शरमा रही है,
रात के अनुरोध पर गीत मधुमित गा रही है।
अलगनी पे एक टुकड़ा साँझ का घबरा रहा है,
बादलों के बीच छिपता सूर्य मद्धम गा रहा है।

सांध्य के अनुरोध पर चाँदनी का रथ सजायें
गीत ये गुमसुम रहें ना आ चलो हम गुनगुनाएं।

दूर सपनों के नगर में एक हलचल सी मची है,
आस का आँगन खिला है भावों पे मेहँदी रची है।
सज रहे हैं कामनाओं के सुहाने पुष्प पल-पल,
और अधरों पर मचलते अहसास के गीत हर पल।

कामनाओं के नगर में आ चलो हम दूर जायें,
गीत ये गुमसुम रहें ना आ चलो हम गुनगुनाएं।

कौन जाने किस घड़ी में सांध्य जीवन की ढलेगी,
कौन जाने किस सफर के राह को मंजिल मिलेगी।
उम्मीद का ये सांध्य तारा कर रहा हमको इशारा,
छोड़ दें अब प्रश्न सारे कौन जीता कौन हारा।

नेह का आधार लिख कर जुगनुओं सा जगमगाएं,
गीत ये गुमसुम रहें ना आ चलो हम गुनगुनाएं।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       15 मार्च, 2024

मधुऋतु का गीत

मधुऋतु का गीत

ये मधुऋतु का गीत अधर पर
साथी तुमसे ही पाया हूँ।

बँधा हुआ था अब तक जीवन
पतझड़ के कंटक तारों से।
व्याप रहा चँहुओर कुहासा,
धुन्ध घनेरे व्यवहारों से।

मुक्त नहीं थे गीत हृदय के,
सब खोई-खोई आशा थी।
रहा अचेतन जीवन कल तक,
अरु सुप्त सभी अभिलाषा थी।

अभिलाषा के गीत अधर पर,
साथी तुमसे ही पाया हूँ।

खोये-खोये गीत सभी थे,
अधरों पर कैसा पहरा था।
फूल-फूल के हृदय पटल पर,
आहों का छाया कुहरा था।

दूर-दूर तक अँधियारे थे,
सब खोई-खोई राहें थीं।
रुँधे-रुँधे थे भाव हृदय के,
सब दबी कण्ठ में आहें थीं।

आहों का अनुरोध अधर पर,
साथी तुमसे ही पाया हूँ।

ऋतुएँ मदमाती मन को,
दूर गगन में ले जाती थीं।
चंदा तारों के आँगन में,
मधुऋतु के गीत सजाती थीं।

उन गीतों के केंद्र बिंदु में,
दबी कहीं मन की आशा थी।
उम्मीदों के उच्च शिखर पर,
मधुऋतु की इक अभिलाषा थी।

मधुऋतु का ये भाव हृदय में,
साथी तुमसे ही पाया हूँ।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       11 मार्च, 2024


चला जाऊँगा

चला जाऊँगा

न होगा तेरी पलकों को मेरा इंतजार चला जाऊँगा।
जब न रहेगा बीच हमारे कोई इकरार  चला जाऊँगा।
एक भरोसे की डोर ही तो थी जिसने बाँध रखी थी हमें,
अब जो भरोसे में ही पड़ गयी है दरार चला जाऊँगा।




गीतों में गुणगान

गीतों में गुणगान

सत्य से लग कर गले, जो जिंदगी को तार दे
सांध्य के अंतिम पलों का, गीत जो स्वीकार ले
शून्यता में गूँजते हों, हर घड़ी गान जिसका
रश्मियाँ न करें क्यूँ, गीतों में गुणगान उसका।

दूर इस गोधूलि में, एक आकृति जो दिख रही 
सूर्य के अवसान का, वो गीत देखो लिख रही
इस दिवस के अंत में, गूँजता सम्मान जिसका
रश्मियाँ न करें क्यूँ, गीतों में गुणगान उसका।

सत्य को जिसने जिया, दी है साँसों को निशानी
और पदचाप जिसके, हैं लिखे पल-पल कहानी
पंथ के हर भाव में, सौम्य था अनुमान जिसका
रश्मियाँ न करें क्यूँ, गीतों में गुणगान उसका।

अश्रु भी जिसके पलक में, मौन हो हँसते रहे
आह भी जिसके अधर पर, गीत बन सजते रहे
अश्रु के सम्मान में, भी रहा अहसान जिसका
रश्मियाँ न करें क्यूँ, गीतों में गुणगान उसका।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        09 मार्च, 2024

एक संत की अंतिम यात्रा

एक संत की अंतिम यात्रा

देह की अंतिम अवस्था का गीत मैं न खोज पाया
लिख रहा हूँ गीत कब से आज तक न जान पाया
व्याकरण थे मौन सारे भावों का वो अंत था
सांध्य के अंतिम पलों में जो गया वो संत था

उम्र जिसके द्वारा पर जब तक रही हँसती रही
देह की अंतिम अवस्था शून्य से कहती रही
है चला वो शून्य में सब मोह से कर के किनारा
लिख जिंदगी का पृष्ठ अंतिम मृत्यु को देने सहारा
शून्य के अंतिम शिखर पर जिंदगी का अंत था
सांध्य के अंतिम पलों में जो गया वो संत था

गंग की निर्मल लहर ज्यूँ कर रही जिसकी प्रतीक्षा
अंक में रख शीश अपना सो गया कर पूर्ण इच्छा
देवताओं के नगर में आज कुछ हलचल रहेगी
आगमन ऐसा हुआ है रश्मियाँ सब कुछ कहेंगी
गंग की निर्मल लहर का प्रभाव वो अंनत था
सांध्य के अंतिम पलों में जो गया वो संत था

सत्य है ये अंत है बस देह की मन की नहीं
आत्मा तो मुक्त है तन से कब बँध कर रही
यादों में हरपल रहेंगी मौन स्मृतियाँ हमेशा
और गीतों में सजेंगी शब्दों की कलियाँ हमेशा
बनके फिर नवयुग सजेगा न कहो के अंत था
सांध्य के अंतिम पलों में जो गया वो संत था

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       08 मार्च, 2024

मौन लेखनी-क्यूँ

मौन लेखनी-क्यूँ

आवाज आ रही है कैसी मचान से
बदले हुए हालात हैं हिंदुस्तान के
अश्रु बह रहे हैं आज बागबान के
संस्कार बदले हैं आज नौजवान के
बिक रहा जमीर संस्कार दांव पे
पाँव भी झुलस रहे हैं आज छाँव से
शब्द के प्रभाव का सम्मान खो रहा
भावनाओं के समर में वीर सो रहा
स्वयं से ही पूछता है स्वयं कौन है
कोई कहे लेखनी क्यूँ आज मौन है।

सत्ता केंद्रबिंदु राजनीति स्वार्थ की
बातें झूठी हो रही सब परमार्थ की
इस बगल से उस बगल झाँकते सभी
पद, लोभ, मोह को ही ताकते सभी
कौन जाने ऊँट किस करवट पे बैठेगा
सत्ता के प्रभाव से दुर्बल भी ऐंठेगा
इतिहास है गवाह ऐसी कामनाओं की
सुध नहीं रही किसी के भावनाओं की
इतिहासों के पृष्ठों को लिखा जो कौन है
कोई कहे लेखनी क्यूँ आज मौन है।

बदल रही सदी में व्यवहार खो रहा
झूठ के प्रभाव से सत्यकाम रो रहा
बिक रही जमीन आसमान बिक रहा
जाने क्यूँ जमीर बेलगाम बिक रहा
अर्थ के प्रभाव से हृदय मचल रहा
लोभ, मोह, लालसा में फिसल रहा
दूरियों से रिश्तों के आकार बदलते
आपसी सद्भाव के व्यवहार बदलते
रिश्ते सभी पूछते पहचान कौन है
कोई कहे लेखनी क्यूँ आज मौन है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        03 मार्च, 2024

नैन तेरे द्वार को ही तक रहे हैं

नैन तेरे द्वार को ही तक रहे हैं

ये कटीले शूल अब तक पुष्प का अहसास देते,
क्या अभी तक नैन तेरे द्वार को ही तक रहे हैं।

हैं हवायें शुष्क लेकिन कहीं कुछ इनमें नमी है,
उष्णता से हैं भरे पथ पर कहीं कुछ तो नमी है,
बदलियाँ सागर किनारे नेह का आभास देते,
क्या अभी तक बदलियों को नैन तेरे तक रहे हैं।

पुष्प की है पंखुरी अब स्वयं खिलती जा रही है,
थी खुली जो लट अभी तक उँगलियाँ सुलझा रही हैं,
नैन में काजल निखर कर कोर को आवाज देते,
क्या अभी तक नैन तेरे कोर को ही तक रहे हैं।

है कहीं कुछ बात ऐसी सांध्य भी शरमा रही है,
बदलियों की ओट में अब चाँदनी शरमा रही है,
चाँदनी की रश्मियाँ भी प्रेम को अनुप्रास देतीं,
क्या अभी तक नैन तेरे चाँदनी को तक रहे हैं।

दूरियाँ नजदीकियों में आज परिवर्तित हुई हैं,
मधुमास की तारिकाएँ स्वयं अनुबंधित हुई हैं,
पंथ के जो शूल थे सब पुष्प का अहसास देते,
क्या अभी तक नैन तेरे द्वार को ही तक रहे हैं।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01 मार्च, 2024

श्री भरत व माता कैकेई संवाद

श्री भरत व माता कैकेई संवाद देख अवध की सूनी धरती मन आशंका को भाँप गया।। अनहोनी कुछ हुई वहाँ पर ये सोच  कलेजा काँप गया।।1।। जिस गली गुजरते भर...