प्रिय तुम्हारे मृदुल स्वरों में मैंने अपनापन पाया है
रोमांचित मन प्राण हुआ है, अधरों से अमृत छलका है।
नयनों के स्नेहिल कोरों से, सपनों का मधुरस छलका है।
पुष्पित मन के भाव हुए हैं, दूर हुआ मन का अँधियारा।
गुंजित मन के गीत हुए हैं, या है मीरा का इकतारा।
स्नेहिल गीतों के भावों की, अंतस पर पावन छाया है
प्रिय तुम्हारे मृदुल स्वरों में, मैंने अपनापन पाया है।।
छँटे सभी शंका के बादल, आहों को विश्वास दिया है।
अंतस का हर कोना महका, साँसों ने मधुमास जिया है।
हमने अपने मन के भीतर, है पाया मृदु अहसास प्रिये।
छँटे धुंध के काले साये, है पाया तुमको पास प्रिये।
मेरे मन के हृदयाँगन ने, तुमसे ही गायन पाया है।
प्रिय तुम्हारे मृदुल स्वरों में, मैंने अपनापन पाया है।।
आह्लादित मन उपवन सारा, जब भेजे भँवरों ने प्रस्ताव।
गीतों में आमंत्रण पाकर, सब दूर हुए मन के दुर्भाव।
मेरे मन के रिक्त कोष ने, पाया मधु का भंडार प्रिये।
सूखे पतझड़ के मौसम में, पाया बाहों का हार प्रिये।
पोर-पोर रोमांचित है यूँ, चाहत का सावन आया है।
प्रिय तुम्हारे मृदुल स्वरों में, मैंने अपनापन पाया है।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30 मार्च, 2024