गीतों में गुणगान

गीतों में गुणगान

सत्य से लग कर गले, जो जिंदगी को तार दे
सांध्य के अंतिम पलों का, गीत जो स्वीकार ले
शून्यता में गूँजते हों, हर घड़ी गान जिसका
रश्मियाँ न करें क्यूँ, गीतों में गुणगान उसका।

दूर इस गोधूलि में, एक आकृति जो दिख रही 
सूर्य के अवसान का, वो गीत देखो लिख रही
इस दिवस के अंत में, गूँजता सम्मान जिसका
रश्मियाँ न करें क्यूँ, गीतों में गुणगान उसका।

सत्य को जिसने जिया, दी है साँसों को निशानी
और पदचाप जिसके, हैं लिखे पल-पल कहानी
पंथ के हर भाव में, सौम्य था अनुमान जिसका
रश्मियाँ न करें क्यूँ, गीतों में गुणगान उसका।

अश्रु भी जिसके पलक में, मौन हो हँसते रहे
आह भी जिसके अधर पर, गीत बन सजते रहे
अश्रु के सम्मान में, भी रहा अहसान जिसका
रश्मियाँ न करें क्यूँ, गीतों में गुणगान उसका।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        09 मार्च, 2024

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