मौन लेखनी-क्यूँ
आवाज आ रही है कैसी मचान से
बदले हुए हालात हैं हिंदुस्तान के
अश्रु बह रहे हैं आज बागबान केसंस्कार बदले हैं आज नौजवान के
बिक रहा जमीर संस्कार दांव पे
पाँव भी झुलस रहे हैं आज छाँव से
शब्द के प्रभाव का सम्मान खो रहा
भावनाओं के समर में वीर सो रहा
स्वयं से ही पूछता है स्वयं कौन है
कोई कहे लेखनी क्यूँ आज मौन है।
सत्ता केंद्रबिंदु राजनीति स्वार्थ की
बातें झूठी हो रही सब परमार्थ की
इस बगल से उस बगल झाँकते सभी
पद, लोभ, मोह को ही ताकते सभी
कौन जाने ऊँट किस करवट पे बैठेगा
सत्ता के प्रभाव से दुर्बल भी ऐंठेगा
इतिहास है गवाह ऐसी कामनाओं की
सुध नहीं रही किसी के भावनाओं की
इतिहासों के पृष्ठों को लिखा जो कौन है
कोई कहे लेखनी क्यूँ आज मौन है।
बदल रही सदी में व्यवहार खो रहा
झूठ के प्रभाव से सत्यकाम रो रहा
बिक रही जमीन आसमान बिक रहा
जाने क्यूँ जमीर बेलगाम बिक रहा
अर्थ के प्रभाव से हृदय मचल रहा
लोभ, मोह, लालसा में फिसल रहा
दूरियों से रिश्तों के आकार बदलते
आपसी सद्भाव के व्यवहार बदलते
रिश्ते सभी पूछते पहचान कौन है
कोई कहे लेखनी क्यूँ आज मौन है।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
03 मार्च, 2024
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