एक संत की अंतिम यात्रा
लिख रहा हूँ गीत कब से आज तक न जान पाया
व्याकरण थे मौन सारे भावों का वो अंत था
सांध्य के अंतिम पलों में जो गया वो संत था
उम्र जिसके द्वारा पर जब तक रही हँसती रही
देह की अंतिम अवस्था शून्य से कहती रही
है चला वो शून्य में सब मोह से कर के किनारा
लिख जिंदगी का पृष्ठ अंतिम मृत्यु को देने सहारा
शून्य के अंतिम शिखर पर जिंदगी का अंत था
सांध्य के अंतिम पलों में जो गया वो संत था
गंग की निर्मल लहर ज्यूँ कर रही जिसकी प्रतीक्षा
अंक में रख शीश अपना सो गया कर पूर्ण इच्छा
देवताओं के नगर में आज कुछ हलचल रहेगी
आगमन ऐसा हुआ है रश्मियाँ सब कुछ कहेंगी
गंग की निर्मल लहर का प्रभाव वो अंनत था
सांध्य के अंतिम पलों में जो गया वो संत था
सत्य है ये अंत है बस देह की मन की नहीं
आत्मा तो मुक्त है तन से कब बँध कर रही
यादों में हरपल रहेंगी मौन स्मृतियाँ हमेशा
और गीतों में सजेंगी शब्दों की कलियाँ हमेशा
बनके फिर नवयुग सजेगा न कहो के अंत था
सांध्य के अंतिम पलों में जो गया वो संत था
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
08 मार्च, 2024
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