बीते कितने फाग सुहाने कुछ रंग न मुझको भाया,
नहीं डाकिया आया कोई और न संदेशा आया।
बिन साजन फागुन ना भाये ये जा उनको बतलाओ,
जा रे कागा मेरे मन के गीत पिया तक ले जाओ।
कब तक झूठे सपनों से मैं पलकों का आँगन लीपूँ,
कब तक अंतस के आँगन में मैं रेख पिया के खींचूँ।
खो ना जाये धीरज मन का आ कर के आस जगाओ,
जा रे कागा मेरे मन के गीत पिया तक ले जाओ।
बरसों-बरसों गाँव चले हैं शहर पास ले आने को,
कितने फागुन कितने सावन तरसे साथ मनाने को।
इस फ़ागुन में अपने संग-संग उनको भी ले आओ,
जा रे कागा मेरे मन के गीत पिया तक ले जाओ
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
24 मार्च, 2024
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