छले जा रहे हैं
करें क्या शिकायत गैरों की बोलो अपनों के हाथों छले जा रहे हैं
बुझा दो चिराग ए मोहब्बत दिलों से कि इनकी किसी को जरूरत नहीं है
फरेबी उजालों ने ऐसा छला है के देखा जिधर दिलजले जा रहे हैं
ये मुहब्बत हमें रास आयी नहीं या इस राह के हम ही काबिल नहीं थे
कि गुजरे मोहब्बत की जब भी गली से धोखे ही दिल को मिले जा रहे हैं
प्याले उन्हीं को यहाँ रास आते कि मय से मोहब्बत जिन्हें हो गयी हो
प्याले को पूजा रही प्यास जब तक फेंक फिर " देव " देखो चले जा रहे हैं
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
17 मार्च, 2024
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