लहरों का गीत
मधुमित सुरभित हो संसार।
झर-झर-झर निर्झर सम पुलकित,
लहरें करतीं हैं मनुहार।
राग अमर भावों में भरती,
भरती मधु घट सा अनुराग।
निशा दीप से जगमग होए,
भींगे दिवस बने मन फाग।
तन उपवन मन कुसुमित होए,
हरषि सुरभि हो मन संसार।
पग-पग पथ जगमग-जगमग हो,
पूर्ण मनोरथ का हो नाद।
सहज भाव आनंदित मन से,
पथ से पथ का हो संवाद।
विजय पंथ में नवजीवन भर,
पथिक पंथ का हो विस्तार।
अश्रु सिंधु से पूजित करता,
देता जीवन को मधु राग।
कंटक पथ भी पुण्य बने तब,
सजे कण्ठ में जब नव राग।
अनुरंजित भावों से सज्जित,
रखती मन वीणा के तार।
मुक्त कंठ से कहती कविता,
देती सपनों का उपहार।
झिलमिल ज्योति पुंज से सिंचित,
करती नयनों का उद्धार।
जीवन का हर पृष्ठ सजाकर,
देती कविता को आधार।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
28 मार्च, 2024
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