है हवा का गीत मद्धम चाँदनी शरमा रही है,
रात के अनुरोध पर गीत मधुमित गा रही है।
अलगनी पे एक टुकड़ा साँझ का घबरा रहा है,
बादलों के बीच छिपता सूर्य मद्धम गा रहा है।
सांध्य के अनुरोध पर चाँदनी का रथ सजायें
गीत ये गुमसुम रहें ना आ चलो हम गुनगुनाएं।
दूर सपनों के नगर में एक हलचल सी मची है,
आस का आँगन खिला है भावों पे मेहँदी रची है।
सज रहे हैं कामनाओं के सुहाने पुष्प पल-पल,
और अधरों पर मचलते अहसास के गीत हर पल।
कामनाओं के नगर में आ चलो हम दूर जायें,
गीत ये गुमसुम रहें ना आ चलो हम गुनगुनाएं।
कौन जाने किस घड़ी में सांध्य जीवन की ढलेगी,
कौन जाने किस सफर के राह को मंजिल मिलेगी।
उम्मीद का ये सांध्य तारा कर रहा हमको इशारा,
छोड़ दें अब प्रश्न सारे कौन जीता कौन हारा।
नेह का आधार लिख कर जुगनुओं सा जगमगाएं,
गीत ये गुमसुम रहें ना आ चलो हम गुनगुनाएं।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
15 मार्च, 2024
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