कोर के अश्रु भी मुस्कुराने लगे
कोर के अश्रु भी मुस्कुराने लगे।
साँस भी ले न पाती यहाँ जिंदगी,
आस को भी यहाँ सहारा न होता।
घुटती बेचैनियों में हर बन्दगी
उम्मीद का एक इशारा न होता।
आस को जब मिला आसरा नेह का,
नैन के स्वप्न भी मुस्कुराने लगे।
तोड़ पनघट किनारे लहर मुड़ गयी,
नाव मँझधार में राह तकने लगी।
बीच पतवार ने जब सहारा दिया,
तेज मँझधार में नाव चलने लगी।
नाँव को जब मिला आस पतवार का,
तेज मँझधार भी साथ आने लगे।
समय के अंक से मौन पल जब गिरा,
सदियों तक रास्ते छटपटाते रहे।
राह को जब मिला दीप का आसरा,
दूर तक दीप से जगमगाते रहे।
रात को जब मिला आसरा दीप का,
दूर जो राह थे पास आने लगे।
पीर को जब मिला आसरा नेह का
कोर के अश्रु भी मुस्कुराने लगे।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
19 मार्च, 2024
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