चलो ढूँढ़ लाएं।

चलो ढूँढ़ लाएं।  

साँझ की धुंध में खो न जाएं कहीं
यादों से फिर गीत अपने सजाएँ
खो न जाये कहीं याद फिर रात में
इक दूजे को फिर चलो ढूँढ़ लाएं।।

लहरों की धुन पर बूँदों की लड़ियाँ
नाचें हैं जैसे नयनों में परियाँ
अधरों पे यादों के गीत सजे हैं
पलकों में खुशियों के दीप सजे हैं
चलो फिर नया दीप कोई जला लें
यादों को फिर से गले हम लगा लें
कहीं फिर से ये रास्ते खो न जायें
इक दूजे को फिर चलो ढूंढ लाएं।।

छम-छम फुहारों ने सरगम सजाया
ऋतुओं ने फिर से मिलन गीत गाया
चलो फिर मौसम में हम भींग जाएं
बीते दिनों को हम फिर से बुलाएं
फिर दूर पनघट पे यादें न तरसें
मिलें इस तरह कि फिर पलकें न बरसें
सोई हुई साँसें फिर से जगाएं
इक दूजे को फिर चलो ढूंढ लाएं।।

तुमसे शुरू हो ये तुम पर खतम हो
तेरा साथ पाऊँ कोई जनम हो
जैसे किनारों को लहरें सजायें
तुझे मैं सजाऊँ मुझे तुम सजाओ
प्यासी मैं नदिया सागर तू मेरा
तुझसे खिला मेरे मन का अँधेरा
अँधेरी राहों को फिर से सजाएं
इक दूजे को फिर चलो ढूँढ़ लाएं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       30जून, 2023
       





पल संयोग के।

पल संयोग के।  

कट चुके हैं जिन्दगी के, पल जो थे वियोग के
आ रहे हैं पल मिलन के, देख लो संयोग से।

मौन थी राहें सभी ये, मौन थे सपने सभी
दूर होते जा रहे थे, पास थे अपने कभी
तुम चले हम चले, यहाँ जाने किस सहयोग से
आ रहे हैं पल मिलन के, देख लो संयोग से।

कुछ तुम्हारे मन में, और कुछ मन में हमारे
राहतें कुछ पल रहीं, जानूँ न किसके सहारे
मन में मन की चाह पनपी मन के मनयोग से
आ रहे हैं पल मिलन के, देख लो संयोग से।

दूर था जाना मगर, दूर जाकर रह न पाये
अलिखित पँक्तियों को गीतों में फिर गुनगुनाये
गीत सकुचित जी उठे फिर प्रीत के अवियोग से
आ रहे हैं पल मिलन के देख लो संयोग से।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27जून, 2023

सब माटी सब धूल।

सब माटी सब धूल।  

दोहा 

बिना ज्ञान के लेखनी, उतना ही मन भाय।
जैसे अधजल गागरी, पथ में छलकत जाय।।1।।

माता के परित्याग पर, प्रश्न उठाते लोग।
प्रभु की निष्ठा पर यहाँ, दोष लगाते लोग।।2।।

जैसी बुद्धि विवेक है, वैसे प्रश्न उठाय।
जाकी जैसी भावना, वैसा ही फल पाय।।3।।

चौपाई

धर्म ज्ञान के ज्ञाता सारे, बाँच रहे रामायण सारे।।
अपने मन के प्रश्न उठाते, रामायण की कथा सुनाते।।

कहते माता को क्यूँ छोड़ा, क्यूँ कर उनसे नाता तोड़ा।।
रामायण में कमी बताते, प्रभु के मन को कब छू पाते।।

नारीवादी बनते सारे, गर्भ में फिर कन्या क्यूँ मारे।।
खुद नारी ना नारी भावे, औरों पर क्यूँ प्रश्न उठावे।।

राजा का बस धर्म एक है, जन सेवा ही धर्म नेक है।।
ऊंच नीच का भेद न माने, परहित सेवा केवल जाने।।

राजा वही सभी की सुन ले, स्वार्थ छोड़ जन सेवा चुन ले।।
अपना क्या है कौन पराया, जो भी आया नेह लुटाया।। 

अपने सुख का त्याग किया है, राज धर्म का मान किया है।।
राजा पर जब प्रश्न उठाया, खुद को ही तब सजा सुनाया।।

जब से त्याग सिया का कीन्हा, अपने प्राण स्वयं हर लीन्हा।।
प्रभु का दुख क्यूँ देख न पाये, अर्ध ज्ञान जब कथा सुनाये।।

राजकीय पद की है गरिमा, अपने मुख से कैसी महिमा।।
साधू, सन्यासी या राजा, श्रेष्ठ वही जिसने सुख त्यागा।।


दोहे

बिन जाने समझे बिना, कहें न कोई बात।
मन ही केवल जानता, नयनों की बरसात।।1।।

मर्यादा प्रभु राम ही, भारत के हैं मूल।
इनके सम्मुख सम्पदा, सब माटी सब धूल।।2।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        24जून, 2023

दोहे।

दोहे। 

धन से बड़ा न दीखता, आज नहीं अब पंथ।
बौने इसके सामने, हुए सभी क्यूँ ग्रन्थ।।

सबके अपने हैं विषय, सबके हैं अनुराग।
अपनी-अपनी लेखनी, अपना-अपना राग।।

औरों की आलोचना, अपनी गलती माफ।
इससे पहले राखिए, अपने मन को साफ।।

विश्लेषण बस वो करे, जिसका ज्ञान अपार।
कहे अन्यथा देव फिर, बातें सब बेकार।।

अपने-अपने भाव को, व्यक्त करें सब लोग।
कोई करता मौन से, कोई कर सहयोग।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        20जून, 2023





मैं तेरे आँसू पी लूँ।


मैं तेरे आँसू पी लूँ। 

यहीं कहीं पर जीवन है इक बार तो मैं जी लूँ
तू मेरी खुशियाँ जी ले मैं तेरे आँसू पी लूँ।

कितनी बार उठे हैं गिरकर इन पथरीली राहों में
रोकर कितनी बार हँसे हैं इक दूजे की बाहों में
कल जो दर्द मिला था उसके जख्म आज मैं फिर सी लूँ
तू मेरी खुशियाँ जी ले मैं तेरे आँसू पी लूँ।

उम्र हमें अब ले आयी है यादों के मैखाने में
बीते दिन फिर छलक रहे हैं पलकों के पैमाने में
यादों में जो आह बसी है उन आहों को मैं जी लूँ
तू मेरी खुशियाँ जी ले मैं तेरे आँसू पी लूँ।

जीवन की ये सांध्य सुनहरी जाने कितनी देर चलेगी 
दूर क्षितिज को तकती आँखें क्या जाने कब कहाँ ढलेगी
दिल चाहे सपना बन जाऊँ मुझको पलकों में सी ले 
तू मेरी खुशियाँ जी ले मैं तेरे आँसू पी लूँ।

 ©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        19जून, 2023


पिता दिवस।

पिता दिवस।  

जो खुद पिता है 
वो पिता दिवस 
पर क्या लिखेगा
चंद पसीने की बूँदें, 
सिलवट भरे कपड़े
अनसुलझे सवालात, 
कुछ जज्बात लिखेगा।
कब कहा उसने कि 
उसका भी 
एक दिन मुकर्रर हो
हाँ, 
कुछ कहे अनकहे सपनों पर
बस मुस्कुराकर 
हालात लिखेगा।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        18जून, 2023

दोहे- " आदिपुरुष " पर।

दोहे- " आदिपुरुष " पर।  

बैठे गिद्ध दृष्टि डाल, सत्ता लोलुप लोग।
शुचिता की किसको पड़ी, करते नित नव भोग।।

अभिव्यक्ति के नाम पर, मची हुई है गन्ध।
आदिपुरुष को देख कर, जनता सारी दंग।।

क्या पैसा इतना बड़ा, नैतिकता निर्मूल।
धर्मपरायणता सभी, गये सभी क्या भूल।।

ग्रन्थों पर आक्षेप अब, लगता बारंबार।
फिल्मों में परिहास का, सजा नया बाजार।।

हैरत में प्रभु राम हैं, आदिपुरुष को देख।
सोच रहे कैसे मिटे, संवादों का लेख।।

धन के नीचे दब गये, धर्म ग्रन्थ पहचान।
नैतिकता गिरवी हुई, पैसों का सम्मान।।

जनता को अब सोचना, अपने धन का मोल।
अनुचित का अब त्याग हो, शुचिता का हो मोल।।

मौन उचित है बस वहीं, जहाँ धर्म का मान।
ऐसे पथ को त्यागिये, होय जहाँ अपमान।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       18जून, 2023

मैं जानूँ या दिल जाने।

मैं जानूँ या दिल जाने।  

पल-छिन पल-छिन इस जीवन के, कैसे बीते क्या जानें
कितनी बातें कितनी यादें, मैं जानूँ या दिल जाने।

नयनों ने कितने पल देखे, यादों के इस मेले में
सपने कितने छलक गये हैं, बूँदों के इस रेले में
पलकों को कैसे समझाया, मैं जानूँ या दिल जाने
कितनी बातें कितनी यादें....।

सावन बरसे रैना तरसे, निस दिन इस अँगनाई में
मैं तो पल-पल ढूँढूँ खुद को, अपनी ही परछाईं में
रातों को कितना समझाया, मैं जानूँ या दिल जाने
कितनी बातें कितनी यादें....।

यादों के मेले में जब भी, कभी अकेले होते हैं
भीड़ भरी तन्हाई में भी, छुप-छुप अकसर रोते हैं
यादों को कितना समझाया, मैं जानूँ या दिल जाने
कितनी बातें कितनी यादें....।

नहीं किसी से रही शिकायत, अब कोई अफसोस नहीं
और नहीं उम्मीद किसी से, अपना ही जब होश नहीं
होश गँवा कर क्या-क्या पाया, मैं जानूँ या दिल जाने
कितनी बातें कितनी यादें....।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       17जून, 2023

प्रेम के प्रतिमान सारे गीत में हम आज भर दें।

प्रेम के प्रतिमान सारे गीत में हम आज भर दें।

आज मन की दहलीज पर हैं खड़ी कुछ कल्पनायें
दे रहीं दस्तक हृदय पर फिर मचलती कामनायें
कल्पनाओं से हृदय के शून्य को हम आज भर दें
प्रेम के प्रतिमान सारे गीत में हम आज भर दें।

कुछ अधूरे स्वप्न लेकर साथ हम तुम चल रहे हैं
नेह का अहसास है जब स्वयं को क्यूँ छल रहे हैं
नेह का अहसास चुनकर प्रीत का घट आज भर दें
प्रेम के प्रतिमान सारे गीत में हम आज भर दें।

जीत की फिर क्यूँ हवस हो जब हारने में जीत हो
शब्द भी रहते अबोले जब इस हृदय में प्रीत हो
हार कर इक दूसरे को गीत में नव साज भर दें
प्रेम के प्रतिमान सारे गीत में हम आज भर दें।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        16जून, 2023

आज फिर इतना बता दो ये सिसकती रात क्यूँ है।

आज फिर इतना बता दो ये सिसकती रात क्यूँ है।

है विदित इतना सभी को जो किया वो ही भरेगा
भाग्य का लेखा मिटाना कब यहाँ संभव रहेगा
जानते हैं सब यहाँ पर है कहीं कुछ तो बकाया
पुण्य के इस खेल में जो कुछ बचा वो साथ आया
रेख जब इतना लिखा था फिर विकल जज्बात क्यूँ है
आज फिर इतना बता दो ये सिसकती रात क्यूँ है।

इस जिंदगी की राह में कितने उठे कितने गिरे
कुछ तो सँभल कर चल दिये कुछ मंजिलें तकते रहे
ताकती है राह अब भी कौन जो अवरोध तोड़े
दूर होती मंजिलों के पास जाकर राह जोड़े
जब नहीं कोई सहारा फिर तड़पती राह क्यूँ है
आज फिर इतना बता दो ये सिसकती रात क्यूँ है।

आज जो है पास अपने कौन जाने कल रहेगा
दर्द जो जिसको मिला है वो यहाँ अपना सहेगा
क्या पता कब सांध्य ढलकर राह अपनी चल पड़ेगी
पृष्ठ में इतिहास के छप सांध्य की बातें कहेगी
सांध्य का मन पढ़ न पाया फिर बिलखती रात क्यूँ है
आज फिर इतना बता दो ये सिसकती रात क्यूँ है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        15जून, 2023

अधूरे गीत।

अधूरे गीत। 

कुछ शब्द अधूरे हैं, इन गीतों में अब भी
कुछ शब्द मिला कर के, पूरा हम भर दें।

बीते कितने ही दिन, बीती कितनी रातें
हैं कहीं अधूरी कुछ, हैं पूरी कुछ बातें
कुछ बात सँभालो तुम, कुछ बात सँभालें हम
इस खालीपन को हाँ, फिर पूरा हम भर दें।

मेरी आवाजों से, आवाज मिला दो तुम
जो भूले बिसरे हैं, वो साज मिला दो तुम
जो दर्द कहीं पर हो, फिर उसे भुला कर हम
इस सूनेपन को फिर, सपनों से हम भर दें।

कुछ बची कहीं अब भी, बिखरी वो रातें हैं
शायद यादों में ही, बाकी सौगातें हैं
जो पास बचा है कुछ, फिर उसे सजा कर हम
इन बिखरी साँसों को, उम्मीदों से भर दें।

 ©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        13जून, 2023


काश कोई द्वार पर आ फिर मुझे आवाज देता।

काश कोई द्वार पर आ फिर मुझे आवाज देता।

मेरे अधरों पर रुके हैं शब्द कुछ अब भी अबोले
चाहता है ये हृदय के दिल के सारे राज खोले
जाने क्यूँ असमंजसों में मन मौन होकर रह गया
क्यूँ जाने पीड़ा के पलों का दर्द सारा सह गया
आह के बीते पलों को आ के कोई साज देता
काश कोई द्वार पर आ फिर मुझे आवाज देता।

लग रहा गुजरे पलों ने फिर से है हमको पुकारा
इस पिघलती साँझ का यहाँ कौन है बोलो सहारा
धुंध है या मौन यहाँ जो इन पलों में छा रहा है
ऐसा क्यूँ लगता कहीं पर गीत कोई गा रहा है
काश जब भी गीत गाता कोई मेरा साथ देता
काश कोई द्वार पर आ फिर मुझे आवाज देता।

ढल चुकी है सांध्य कितनी, बाकी हैं कुछ उँगलियों पर
पर यूँ लगता स्वप्न बाकी, नाचते हैं पुतलियों पर
अब क्या कहूँ कि इस सफर की सांध्य कैसे ढल रही है
क्या कहूँ श्वासों को रातें क्यूँ अकेली खल रही है
काश कोई रात के गीतों को आकर साज देता
काश कोई द्वार पर आ फिर मुझे आवाज देता।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        12जनवरी, 2023

कैसा बोलबाला है।

कैसा बोलबाला है। 

नई-नई आदतों का नया-नया दौर है ये
नया-नया शौक पाले कैसा बोलबाला है।

फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट में बिजी है
कहते हैं युवा उनकी लाइफ बहुत निजी है
लाइक, सब्स्क्रिप्शन की भाग दौड़ बड़ी है
जिसे देखो उसी को अब व्यूअर्स की पड़ी है
मोबाइल ने मन पे जाने कैसा डाला ताला है
नया-नया शौक पाले कैसा बोलबाला है।

ऑनलाइन हुए जबसे ऑफलाइन छूट गया
मिल के जो बना था वो रिश्ता फाइन टूट गया
आई फोन, आई पैड स्टेटस के सिंबल हैं
इनके बिना जाने क्यूँ लाइफ ये सिंगल है
स्टेटस के चक्कर में निकला दिवाला है
नया-नया शौक पाले कैसा बोलबाला है।

भाव छूटी, भक्ति छूटी नेह वाली शक्ति छूटी
दया छूटी, दृष्टि छूटी मेल वाली युक्ति छूटी
वेद छूटा, शास्त्र छूटा, गीता और पुराण छूटा
शिक्षा, धरम, संस्कृति पर से अभिमान छूटा
पश्चिम के खुलेपन से मन हुआ मतवाला है
नया-नया शौक पाले कैसा बोलबाला है।

संगी छूटे, साथी छूटे, दादी छूटी, नानी छूटी
दूध भात कटोरी वाली चंदा की कहानी छूटी
गिल्ली छूटी, डंडा छूटा,  छुप्पन छुपाई छूटी
छत के बिछौने छूटे, तारों की गिनाई छूटी
चंदा की कटोरी में है दूध-भात अब भी
ढूंढता है चंदा इसे कहाँ खाने वाला है।

मिलना-जुलना कम हुआ रिश्ते सभी गुम हुए
कल तक हम थे कब जाने मैं और तुम हुए
रिश्ते सिमट सभी फोन में ही आ गये हैं
आजकल उजालों की अँधेरे भी भा गये हैं
रातें फिर ढूँढ़ रही कहाँ खोया वो उजाला है
नया-नया शौक पाले कैसा बोलबाला है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        11जून, 2023

मुक्तक- मुस्कान।

मुक्तक।  

कभी होता है फूलों में भी कोमल पाँव छिलते हैं
कभी होता है छाँवों में के अकसर पाँव जलते हैं।
प्रसन्न रहने की दुनिया में कोई शर्त नहीं होती
जो मरुथल में हो उम्मीदें वहाँ भी फूल खिलते हैं।।

अब मिले जो जख्म यादों से चलो हम दफ्न कर आएं
हुआ जो कल ये बेहतर है कि उसको भूल हम जायें।
इस उदासी ने हमेशा दर्द को पल-पल बढाया है
भुला कर दर्द बीती का हँसे औरों को हँसा जायें।।

ये मेरा दर्द है इसको मुझे अब आज सहने दो
बहुत चाहा इसे पल-पल के अब तुम और रहने दो।
मेरे हर जख्म को मुस्कान में तुमने बदल डाला
तुम्हीं पर आसना है दिल मुझे अब आज कहने दो।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        09जून, 2023

देख अनदेखा किये।

देख अनदेखा किये।  

उम्र कल तक गीत लेकर द्वार तक आती रही
और हम उस गीत को ही देख अनदेखा किये।

मिलते रहे हमेशा, रास्ते एक दूसरे से
कहते रहे कहानी, आहें एक दूसरे से
बिछड़े जो रास्ते तो, ये साँसें बिछड़ गयीं सब
आहों के दास्ताँ में, जा कर बिखर गयीं सब
आहें ये दर्द लेकर, कितना पुकारती रहीं
और हम उस दर्द को भी, देख अनदेखा किये।

गीतों में लिखते आये वो सारी निशानियाँ
अधरों पे आकर छाईं, वो दिल की कहानियाँ
शब्दों ने जाने कितने, मंजर भिंगो दिये हैं
कहने से पहले दिल पे, खंजर चुभो दिये हैं
आहें ये घाव लेकर, कितना पुकारती रहीं
और हम उस घाव को, भी देख अनदेखा किये।

अब दोष किसको देना, अपना करम है सारा
जिससे बिछड़ गये थे, था शायद धरम हमारा
अब अकेले हैं यहाँ पर, और नहीं है अपना
रह-रह बिछड़ गये हैं, नयनों का देखा सपना
पलकें वो स्वप्न लेकर, कितना पुकारती रहीं
और हम उस स्वप्न को भी, देख अनदेखा किये।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        08जून, 2023




दुनिया का ये अंत नहीं।

दुनिया का ये अंत नहीं।  

पुण्य पंथ पर चलने वालों रुक मत जाना घबराकर
दूर क्षितिज पर डूबा सूरज समझो इसको अंत नहीं
कर अपने मजबूत इरादे दुनिया का ये अंत नहीं।

नहीं रहा है यहाँ सदा ये वक्त बदलता रहता है
नहीं भुलावे की ये बातें स्वयं समय ये कहता है
धूप-ताप जिसने भी झेला वो खिला है कुम्हलाकर
तनिक ताप में कुम्हलाना छाँव का समझो अंत नहीं
कर अपने मजबूत इरादे दुनिया का ये अंत नहीं।

तेरे-मेरे मन की बातें कही-सुनी रह जाएंगी
कविताओं की सारी बातें पन्नों में रह जाएंगी
कविताओं में शब्द छपे जो रखते हैं मन को बहलाकर
लेकिन मन की व्याकुलता से कविताओं का अंत नहीं
कर अपने मजबूत इरादे दुनिया का ये अंत नहीं।

जो कुछ मन ने यहाँ बटोरा इक दिन सब चुक जाएगा
चलते-चलते कदम यहाँ पर कब जाने रुक जाएगा
रोक सका है कौन किसी को सबने देखा फुसलाकर
लेकिन इसके रुक जाने से राहों का है अंत नहीं
कर अपने मजबूत इरादे दुनिया का ये अंत नहीं।

इक आँसू लेकर आये थे हँसते-हँसते जाना है
जीवन है एक महासमर ये क्या खोना क्या पाना है
खोने-पाने की जिद ने रख दिया हृदय को बिखराकर
पाया जो शुरुआत समझ जो खोया उसको अंत नहीं
कर अपने मजबूत इरादे दुनिया का ये अंत नहीं।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        02जून, 2023

श्री भरत व माता कैकेई संवाद

श्री भरत व माता कैकेई संवाद देख अवध की सूनी धरती मन आशंका को भाँप गया।। अनहोनी कुछ हुई वहाँ पर ये सोच  कलेजा काँप गया।।1।। जिस गली गुजरते भर...