चलो ढूँढ़ लाएं।
साँझ की धुंध में खो न जाएं कहीं
यादों से फिर गीत अपने सजाएँ
खो न जाये कहीं याद फिर रात में
इक दूजे को फिर चलो ढूँढ़ लाएं।।
नाचें हैं जैसे नयनों में परियाँ
अधरों पे यादों के गीत सजे हैं
पलकों में खुशियों के दीप सजे हैं
चलो फिर नया दीप कोई जला लें
यादों को फिर से गले हम लगा लें
कहीं फिर से ये रास्ते खो न जायें
इक दूजे को फिर चलो ढूंढ लाएं।।
छम-छम फुहारों ने सरगम सजाया
ऋतुओं ने फिर से मिलन गीत गाया
चलो फिर मौसम में हम भींग जाएं
बीते दिनों को हम फिर से बुलाएं
फिर दूर पनघट पे यादें न तरसें
मिलें इस तरह कि फिर पलकें न बरसें
सोई हुई साँसें फिर से जगाएं
इक दूजे को फिर चलो ढूंढ लाएं।।
तुमसे शुरू हो ये तुम पर खतम हो
तेरा साथ पाऊँ कोई जनम हो
जैसे किनारों को लहरें सजायें
तुझे मैं सजाऊँ मुझे तुम सजाओ
प्यासी मैं नदिया सागर तू मेरा
तुझसे खिला मेरे मन का अँधेरा
अँधेरी राहों को फिर से सजाएं
इक दूजे को फिर चलो ढूँढ़ लाएं।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30जून, 2023