कामनाओं का गीत

कामनाओं का गीत

यूँ ही कोई गीत मेरे भाव को छुए नहीं,
एक तेरे गीत ने ही भावों को सँजो दिया।

छप रहे हैं भाव कितने रोज ही किताबों में,
पढ़ रहे हैं चाहतों को रोज हम हिसाबों में।
कि भावनाओं की तपिश में राहतें बिखर गईं,
ये उम्र देखती रही के चाहतें किधर गईं।

भावनाओं की तपिश से मुझको कुछ गिला नहीं,
एक तेरे भाव ने ही नैनों को भिंगो दिया।

ये उम्र दौड़ती रही है उम्र की तलाश में,
और खुद को तौलते रहे आस में पलाश में।
के एक रंग में कहाँ ये उम्र ढल सकी कहो,
जो सात रंग ना सजे क्या उम्र सज सकी कहो।

कि एक रंग की कशिश से रंगों को गिला नहीं,
एक तेरे चाह ने हर रंगों को सँजो दिया।

है क्या जगत की रीत ये मुझको कुछ पता नहीं,
हार क्या है जीत क्या है मुझको कुछ पता नहीं।
क्या जगत की वेदना का अंत है ना छोर है,
क्यूँ हृदय पे चेतना पे वासना का शोर है।

मेरी हार से यहाँ पे किसी को कुछ मिला नहीं,
पर तेरी जीत ने मेरी हार को सँजो दिया।

जो लिख रहा हूँ गीत मैं तेरा ही प्रभाव है,
हर पंक्ति-पंक्ति प्रेम है हर गीत-गीत भाव है।
हर छंद-छंद कामना हर बंध-बंध प्रार्थना,
हर शब्द-शब्द से हृदय के भाव-भाव साजना।

कि मेरी प्रार्थनाओं को नगर कभी मिला नहीं,
तेरी प्रार्थना ने मेरी कामना सँजो दिया।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28 मई, 2025

गीत पूरे हो गए

गीत पूरे हो गए

यूँ तो चाहतों के गीत हमने हैं लिखे बहुत,
तूने जो छुआ तो मिरे गीत पूरे हो गए।

के शब्द-शब्द में हृदय के भाव टांकते रहे,
कि पंक्तियों के साथ-साथ हम भी जागते रहे।
ये छंद जब मुखर हुए तो प्रीत नाचने लगी,
सब मौन तोड़ कर अधर पे गीत साजने लगी।

यूँ तो भावनाओं के ये गीत हैं लिखे बहुत,
कि तूने जो छुआ तो मिरे गीत पूरे हो गये।

हमने पंक्ति में सदा लिखी उम्र की कहानियाँ,
प्यार-प्रेम के, बिछोह के, स्वभाव की निशानियाँ।
शब्द-शब्द धड़कनों के बोल में समा गये,
जो नैन कोर से मिले तो कोर को सजा गये।

हमने नैन कोरों के वो गीत हैं लिखे बहुत,
तेरी कोर से मिले तो गीत पूरे हो गये।

ना छू सकें अधर को तो पंक्तियाँ अधूरी हैं,
स्वभाव के बिना हृदय की वृत्तियाँ अधूरी हैं।
दिल में हो न भाव तो श्रृंगार सारे व्यर्थ हैं,
जो नेह का अभाव हो तो ज्ञान का न अर्थ है।

नेह और श्रृंगार के यूँ गीत हैं लिखे बहुत,
तेरे नेह में मिले तो गीत पूरे हो गये।

व्याकरण अधूरे सारे छंद भी न पूरे हैं,
स्पर्श के बिना तुम्हारे गीत ये अधूरे हैं।
हैं भाव-भाव छंद बद्ध साँस-साँस प्रीत है,
मन के भाव साजना ही व्याकरण की रीत है

के साँस के स्वभाव के यूँ गीत हैं लिखे बहुत,
तेरे साँस से मिले तो गीत पूरे हो गये।

कि उम्र भर कदम मेरे ये राह नापते सदा,
तुम न मिलते जो यहाँ तो राहें ताकते सदा।
इक तुम्हारे आने से हजार राह खुल गयी,
हम साथ-साथ चल दिये तो राह-राह मिल गयी।

हमने राह के निबाह के गीत हैं लिखे बहुत,
कि राह-राह तुम चले तो गीत पूरे हो गये।


©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27 मई, 2025

व्यंग्य- अभी भी जवान हैं

व्यंग्य- अभी भी जवान हैं

खत के बालों से 
सफेदी क्या झाँकने लगी
युवतियाँ छोड़ो 
आंटियाँ भी बगले ताकने लगीं।
अजीब तो तब लगता है 
जब कोई बुजुर्ग महिला 
अंकल बुला देती है
युवा होने के दंभ को
धीरे से सुला देती है।
इससे भी अजीब तब होता है
जब उन्हें हम बेटी कह के बुलाते हैं
तो नाक सिकोड़ कर 
हमें भौंहें दिखाते हैं।
हमारे सारे संस्कार 
उन्हें बौने नजर आते हैं
उन्हें हम महज
खिलौने नजर आते हैं।
कुछ देर के लिए 
खेलते हैं छोड़ देते हैं,
हम जब खेलते हैं तो 
नजरों को मोड़ लेते हैं।
अब इन्हें कौन समझाए
हमें अंकल कह कर 
जवान हो नहीं जायेंगी,
लाख छुपाएं 
झुर्रियों को मेकअप से 
वो निशान 
छुपा नहीं पायेंगी।
अपना क्या 
हम तो सदाबहार रहते हैं,
उम्र के हर दौर में 
हम तैयार रहते हैं।
उम्र भले ढले
पर दिल तो जवान है,
सारे खंडहरों के बीच
अपना ही सुंदर मकान है।

✍️अजय कुमार पाण्डेय
     

मुक्तक

भाव बन गीत नयनों से बहने लगे।
सभी कहे-अनकहे भाव कहने लगे।
किसी और साथ की फिर जरूरत नहीं,
भाव और गीत जब साथ रहने लगे।

जब मिला साथ तेरा महकने लगे।
मौन जो भाव थे वो चहकने लगे।
अब नशे की मुझे कुछ जरूरत नहीं,
बिन पिये ही कदम ये बहकने लगे।

दर्द को प्रेम ने ऐसा जीवन दिया।
प्रेम को दर्द ने अपना मन जब दिया।
प्रेम का दर्द से ऐसा रिश्ता रहा,
छोड़ कर तन यहाँ दोनों ने मन जिया।

दूरियों को खतम साथ ने कर दिया।
शाम को सुरमई आपने कर दिया।
इक कसक सी कहीं रह गयी जो यहाँ,
दूर सब आपकी बात ने कर दिया।

मोहब्बत की कहानी के ये पन्ने कम नहीं होंगे।
दिलों की राजधानी में दीवाने कम नहीं होंगे।
मिलेंगे चाहने वाले हजारों इस कहानी में,



अधूरे गीत

अधूरे गीत

कैसे लिखते यहाँ गीत हम प्यार के,
शब्द बिन आपके सब अधूरे रहे।

जोड़ कर लम्हों की एक चादर बुनी,
कोर में जिसके सपने सजाए सदा।
कोरों में टांक कर चाहतों की लड़ी,
साँसों को आस से हम मिलाये सदा।

टांकते कैसे हम कोर में प्यार को,
आपकी चाह के बिन अधूरे रहे।

उम्र ढलती रही अपनी रफ्तार से,
एक प्रतीक्षा हृदय में दबी रह गयी।
एक कसक से रही जीत में हार की,
खुल ना पाई हृदय में दबी रह गयी।

कैसे लिखते यहाँ गीत मनुहार के,
आपके साथ के बिन अधूरे रहे।

पास गीतों की कुछ पंक्तियाँ हैं बचीं,
तुम जो छू लो अधर से सहारा मिले।
छंद फिर खिल पड़ें गीत में चाहों के,
फिर जो वो ही पुराना इशारा मिले।

कैसे गाता हृदय गीत इकरार के,
आपके स्पर्श बिन वो अधूरे रहे।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22 मई, 2025

आँसुओं के बोध में घुल गीत ये मुस्का रहे हैं

आँसुओं के बोध में घुल गीत ये मुस्का रहे हैं

रह न पाया एक दिन भी भाव को अपने छुपाकर,
रह न पाया दर्द के अहसास को दिल में दबाकर।
रिस रहा है जो हृदय से भाव बन अनुरोध मेरा,
साँस जो छूती रगों को नेह का है बोध मेरा।

साँस में अनुरोध भी घुल गीत को महका रहे हैं।

कब ढल गयी ये जिंदगी कब सजा आकार मेरा,
चाहा पर न जान पाया प्रीत का आधार मेरा।
फाँस सी चुभती रही पर देखने में कुछ नहीं थी,
आँख सब लिखती रही पर बाँचने में कुछ नहीं थी।

मौन मन में मोह घुलकर प्रीत को दहका रहे हैं।

उम्र प्रतिपल ढूँढती थी जीत में मुस्कान मेरी,
मखमली पैबंद में पर खो गयी पहचान मेरी।
उम्र भर पाया बहुत पर खो गयी मणिदीप भाषा,
अब सशंकित क्या करेंगी मेरे हृदय को ये निराशा।

उम्र अब मनबोध में घुल जीत को महका रहे हैं।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        21 मई, 2025


साँसों का सुमधुर गान

साँसों का सुमधुर गान 

पलकों की चौखट पर सपने तब तक हैं अनजान प्रिये,
अधरों पर जब तक ना आये स्नेहिल मृदु मुस्कान प्रिये।

सारे गान अधूरे तब तक अधरों पर जब तक ना आये,
साँसों की मुस्कान अधूरी जब तक अंतर्मन ना गाये।
अंतस के भावों से जीवन ये तब तक है अनजान प्रिये,
अंतस में जब तक ना आये स्मृतियों का मृदु गान प्रिये।

दृग गागर से बूँद छलक कर जब तक मन को ना मदमाये,
खुशियों का सागर नयनों से निज कमल कपोलों पर छाये।
नयन बूँद के नम भावों से पलकें तब तक अनजान प्रिये,
नयनों की बूँदों को जब तक ना मिल जाये पहचान प्रिये।

जब तक प्रीत अधर ना छू ले तब तक मन मधुमास न होता,
व्याकुल रहता हिय का कोना यादों में आकाश पिरोता।
अहसासों के पुण्य भाव से मन तब तक है अनजान प्रिये,
हिय में जब तक गुंजित ना हो साँसों का सुमधुर गान प्रिये।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        16 मई, 2025

अपने राम को ध्याऊँ

अपने राम को ध्याऊँ

इस जीवन के सब पुण्य फलित हों ऐसा मन बन जाऊँ,
त्याग दूँ सारे मोह जगत के बस मैं राम को ध्याऊँ।

साँस-साँस में नाम जपूँ मैं अब और न कुछ मैं सोचूँ,
नैन तिहारा रूप सजाऊँ अब और न कुछ मैं देखूँ।
कण-कण में प्रभु रूप बसत है तिन में ही शीश झुकाऊँ,
त्याग दूँ सारे मोह जगत के बस मैं राम को ध्याऊँ।

जीवन एक समंदर अपना है तेज बड़ी ये धारा,
जीवन के इस महा सिंधु में बस राम हि खेवनहारा।
धार-धार में प्रभु को पूजूँ मैं पग-पग शीश नवाऊँ,
त्याग दूँ सारे मोह जगत के बस मैं राम को ध्याऊँ।

लोभ मोह से मुक्त बने मन प्रभु भीतर हो उजियारा,
ज्ञान-ध्यान की ज्योति जला दो चहुँओर मिटे अँधियारा।
वेद पुराण ग्रन्थ हो जीवन मैं तिन में ही रम जाऊँ,
त्याग दूँ सारे मोह जगत के बस मैं राम को ध्याऊँ।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        12 मई, 2025

चल पड़ा पार्थ देखो आँधियों को चीरते

चल पड़ा पार्थ देखो आँधियों को चीरते

खण्ड-खण्ड हो रही सभी शिलाएँ मार्ग की,
चल पड़ा पार्थ देखो आँधियों को चीरते।

क्या सकेंगे रोक रिपू पार्थ के प्रवाह को,
चल पड़ा है सूर्य आज रोकने गुनाह को।
हर कदम के शूल आज पुष्प बन रहे यहाँ,
कंटकों से रास्तों में गीत लिख रहे यहाँ।
शूल-शूल गीत की हर पंक्ति-पंक्ति बींधते,
चल पड़ा पार्थ देखो आँधियों को चीरते।

आ गया है वक्त आज शत्रु के विनाश का,
हो चला वक्त देखो फिर से नव प्रकाश का।
रश्मियाँ भी व्योम में अल्पनाएं रच रहीं,
वीरता के माथ की कामनाएं जँच रहीं।
अल्पना की पंक्ति को रिपु लहू से सींचते,
चल पड़ा पार्थ देखो आँधियों को चीरते।

व्यूह में यहाँ न अभिमन्यु फिर फंसेगा अब,
क्रूरता का फल यहाँ कुरु वंश चखेगा अब।
शंखनाद हो चुका है युद्ध ये प्रचंड है,
मात्र मृत्यु ही यहाँ पे दंभी का दंड है।
शत्रु के शिविर में हर शत्रुओं को चीखते,
चल पड़ा पार्थ देखो आँधियों को चीरते।

युद्ध ही अंत हो तो युद्ध का निर्वाह हो,
शत्रुओं के स्वप्न में पार्थ का प्रभाव हो।
कि मुक्त कंठ से कहो प्रचंड सिंधु धार हो,
कि जयद्रथ न उठ सके ऐसा खड्ग वार हो।
भागवत की पंक्ति से इस सदी को सींचते,
चल पड़ा पार्थ देखो आँधियों को चीरते।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        09 मई, 2025

पीर का परबत हृदय ने पार अब तो कर लिया है

पीर का परबत हृदय ने पार अब तो कर लिया है

क्या रुकेंगे पाँव मेरे अब किसी अवरोध से,
अब क्या थमेंगी भावनाएँ मोह से अनुरोध से।
जो मिला हँसकर लिया आभार सबका कर लिया है,
पीर का परबत हृदय ने पार अब तो कर लिया है।

चार पल की जिंदगी के हर पलों की चेतनाएं,
अब क्या करेंगे शूल पथ के क्या करेंगी वेदनाएं।
शून्यता के भाव से भी अब कहीं विचलन नहीं है,
शांत स्थिर है हृदय ये अब कहीं फिसलन नहीं है।

हर उफनते सिंधु को स्वीकार मन से कर लिया है।

लिख रहे हैं पाँव मेरे राह में नूतन कहानी,
दे रहे हैं शौर्य को आकाश से ऊँची निशानी।
जब हुए गहरे कुहासे पाँव ने खुद को सँभाला,
हर घनेरी रात के अहसास से खुद को निकाला।

हर घनेरी रात का प्रतिकार मन ने कर लिया है।

अब नहीं है भय मुझे इस सिंधु की कठिनाइयों से,
अब नहीं अवरोध एकाकी से रुसवाईयों से।
इष्ट ने जो पथ चुना है वो पथ मुझे स्वीकार है,
कर्म के इस मौन पथ में अब कर्म ही व्यवहार है।

सिंधु के हर ज्वार का आभार मन ने कर लिया है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        08 मई, 2025


किस पर भरोसा करे आदमी

किस पर भरोसा कर आदमी

कागज़ के फूलों से चेहरे यहाँ जब,
किसपर भरोसा करे आदमी अब।

जिधर देखिये लोग धुन में मगन हैं,
मिले कैसे कितना यही बस जतन है।
उन्हें दर्द का कुछ पता ही नहीं है,
लगता जिन्हें कुछ खता ही नहीं है।
जख्मों पे मरहम है मुश्किल यहाँ अब,
अपनों से छलनी हुआ आदमी जब।

दिल को दुखाना है आसान अब तो,
कह कर भुलाना है आसान अब तो।
नहीं बात की कोई कीमत रही तब,
कह कर मुकरने की नीयत रही जब।
कह कर मुकरना न मुश्किल यहाँ जब,
क्या फिर किसी से कहे आदमी अब।

महफ़िल हो झूठी तो किससे मिले दिल,
दिल की शिकायत किससे कहे दिल।
लगता है दिल अब जहर घोलता है,
के सोचे बिना ही ये सच बोलता है।
झूठी हो महफ़िल तो सच क्या करे अब,
दर्पण से कैसे मिले आदमी अब।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        05 मई, 2025




ये तुम्हें भी पता ये हमें भी पता

ये तुम्हें भी पता ये हमें भी पता

साथ अपना यहाँ का घड़ी दो घड़ी,
ये तुम्हें भी पता ये हमें भी पता।

लिख रही है पवन इक नई गीतिका,
चाँदनी में घुला रंग है प्रीत का।
इक कहानी नई द्वार पर है खड़ी,
राहतें आस की प्यार से फिर जुड़ीं।
चाँदनी का सफर है घड़ी दो घड़ी,
ये तुम्हें भी पता ये हमें भी पता।

ये पुरवाई भी गीत कुछ बुन रही,
बूँद की थाप भी धुन नई बुन रही।
आज मचली सभी गीत की रागिनी,
मौसमों में घुली प्रीत की चाशनी।
गीत की गीत से जुड़ रही है लड़ी,
ये तुम्हें भी पता ये हमें भी पता।

इक दूजे पे फिर से न इल्जाम हो,
राग की रागिनी में सजा नाम हो।
गीत की पंक्तियाँ यूँ महकती रहे,
कोर पे आधरों के चहकती रहे।
नैन की नैन से बात फिर है छिड़ी,
ये तुम्हें भी पता ये हमें भी पता।

ज हम तुम यहाँ कल न जाने कहाँ,
हम रहेंगे कहीं तुम रहोगे कहाँ।
आज का है जो पल कल रहे न रहे,
क्या पता गीत अधरों पे फिर न रहे।
साँस से साँस की जुड़ रही है कड़ी,
ये तुम्हें भी पता ये हमें भी पता।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        04 मई, 2025

श्री भरत व माता कैकेई संवाद

श्री भरत व माता कैकेई संवाद देख अवध की सूनी धरती मन आशंका को भाँप गया।। अनहोनी कुछ हुई वहाँ पर ये सोच  कलेजा काँप गया।।1।। जिस गली गुजरते भर...