गीत पूरे हो गए

गीत पूरे हो गए

यूँ तो चाहतों के गीत हमने हैं लिखे बहुत,
तूने जो छुआ तो मिरे गीत पूरे हो गए।

के शब्द-शब्द में हृदय के भाव टांकते रहे,
कि पंक्तियों के साथ-साथ हम भी जागते रहे।
ये छंद जब मुखर हुए तो प्रीत नाचने लगी,
सब मौन तोड़ कर अधर पे गीत साजने लगी।

यूँ तो भावनाओं के ये गीत हैं लिखे बहुत,
कि तूने जो छुआ तो मिरे गीत पूरे हो गये।

हमने पंक्ति में सदा लिखी उम्र की कहानियाँ,
प्यार-प्रेम के, बिछोह के, स्वभाव की निशानियाँ।
शब्द-शब्द धड़कनों के बोल में समा गये,
जो नैन कोर से मिले तो कोर को सजा गये।

हमने नैन कोरों के वो गीत हैं लिखे बहुत,
तेरी कोर से मिले तो गीत पूरे हो गये।

ना छू सकें अधर को तो पंक्तियाँ अधूरी हैं,
स्वभाव के बिना हृदय की वृत्तियाँ अधूरी हैं।
दिल में हो न भाव तो श्रृंगार सारे व्यर्थ हैं,
जो नेह का अभाव हो तो ज्ञान का न अर्थ है।

नेह और श्रृंगार के यूँ गीत हैं लिखे बहुत,
तेरे नेह में मिले तो गीत पूरे हो गये।

व्याकरण अधूरे सारे छंद भी न पूरे हैं,
स्पर्श के बिना तुम्हारे गीत ये अधूरे हैं।
हैं भाव-भाव छंद बद्ध साँस-साँस प्रीत है,
मन के भाव साजना ही व्याकरण की रीत है

के साँस के स्वभाव के यूँ गीत हैं लिखे बहुत,
तेरे साँस से मिले तो गीत पूरे हो गये।

कि उम्र भर कदम मेरे ये राह नापते सदा,
तुम न मिलते जो यहाँ तो राहें ताकते सदा।
इक तुम्हारे आने से हजार राह खुल गयी,
हम साथ-साथ चल दिये तो राह-राह मिल गयी।

हमने राह के निबाह के गीत हैं लिखे बहुत,
कि राह-राह तुम चले तो गीत पूरे हो गये।


©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27 मई, 2025

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