व्यंग्य- अभी भी जवान हैं

व्यंग्य- अभी भी जवान हैं

खत के बालों से 
सफेदी क्या झाँकने लगी
युवतियाँ छोड़ो 
आंटियाँ भी बगले ताकने लगीं।
अजीब तो तब लगता है 
जब कोई बुजुर्ग महिला 
अंकल बुला देती है
युवा होने के दंभ को
धीरे से सुला देती है।
इससे भी अजीब तब होता है
जब उन्हें हम बेटी कह के बुलाते हैं
तो नाक सिकोड़ कर 
हमें भौंहें दिखाते हैं।
हमारे सारे संस्कार 
उन्हें बौने नजर आते हैं
उन्हें हम महज
खिलौने नजर आते हैं।
कुछ देर के लिए 
खेलते हैं छोड़ देते हैं,
हम जब खेलते हैं तो 
नजरों को मोड़ लेते हैं।
अब इन्हें कौन समझाए
हमें अंकल कह कर 
जवान हो नहीं जायेंगी,
लाख छुपाएं 
झुर्रियों को मेकअप से 
वो निशान 
छुपा नहीं पायेंगी।
अपना क्या 
हम तो सदाबहार रहते हैं,
उम्र के हर दौर में 
हम तैयार रहते हैं।
उम्र भले ढले
पर दिल तो जवान है,
सारे खंडहरों के बीच
अपना ही सुंदर मकान है।

✍️अजय कुमार पाण्डेय
     

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