याद बनकर

याद बनकर

कब हुई है याद बोझिल कब हुई है राह ओझल,
कब हुए हैं स्वप्न बोझिल कब हुई है नींद ओझल 
हो अभी मानस पटल पर ग्रन्थ का अनुवाद बनकर,
कैसे कह दूँ विदा जब छाये हो तुम याद बनकर।

साथ कितने वक्त गुजरे सांध्य हो या फिर सवेरे
भीड़ में तन्हा रहे और तन्हाई में अकेले
पर तुम्हारी याद हरपल छाई इक गीत बनकर
कैसे कह दूँ विदा जब छाये हो तुम याद बनकर।

पास रहना यदि कठिन था तो दूर रहना भी कठिन
ये मन हमेशा ढूँढता था एक अनजाना मिलन
जिसकी सिलवट में गुजरती जिंदगी सारी सिमटकर
कैसे कह दूँ विदा जब छाये हो तुम याद बनकर।

हो मिलन के भाव मन में या जुदाई की कहानी
उम्र भर लिखती रही है जिंदगी कैसी कहानी
चाहतें विस्तृत रहीं पर रह गईं साँसें उलझकर
कैसे कह दूँ विदा जब छाये हो तुम याद बनकर।

एक ही जीवन मिला है देव उसकी ये कहानी
ढूँढती है साँस हरपल भीड़ में खोई निशानी
मौन सारी चाहतें अब भी हृदय में कहीं छिपकर
कैसे कह दूँ विदा जब छाये हो तुम याद बनकर।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        30अगस्त, 2023

कहाँ पर छोड़ कर आये

कहाँ पर छोड़ कर आये

कुछ हौसला कुछ स्वप्न कुछ पोटली बाँध कर आये
चले कुछ दूर तब जाना कि क्या-क्या छोड़ कर आये
कभी सत्तू, कभी लाई, बताशा, या कभी गुड़ से
बताएं क्या के अपनी भूख कहाँ छोड़ कर आये।

पिता के हाथ की लाठी और माँ की आँख का चश्मा
वो साँकल बीच से तकती सूनी रात का सपना
रातों की सिफारिश में वो चंदा का सँवर जाना
फिर शरमा के तारों में कभी मिलना कभी छुपना।

कितनी आँखों के सपने निगाहों में लिए आये
बतायें क्या मन के भाव कहाँ पर छोड़ कर आये।

चमकती रात सड़कों में उनींदी है उबासी है
उजालों में कहीं हर पल छिपी दिल की उदासी है
छुपा कर दर्द कितने मन यहाँ पर मुस्कुराता है
पलक के कोर में अब भी बची खुशियाँ जरा सी हैं।

कितनी बार पलकों ने छुपाये बूँदों के साये
बतायें क्या कि बूँदों में छुपा कर दर्द क्या लाये।

सपनों की वो पगडंडी अभी भी राह तकती है
कदमों ने लिखी जिसपर वो राहें राह तकती हैं
मगर कुछ तो कहीं पर है जिसे मन कह नहीं सकता
जाती हैं वहीं यादें और जा-जा के रुकती हैं।

उन कदमों की लिखावट से कितने गीत सज आये
बतायें क्या उन कदमों को कहाँ पर छोड़ कर आये। 

✍️©अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        25अगस्त, 2023

चंद्रयान

चंद्रयान

राष्ट्र के स्वभाव का प्रमाण चंद्रयान है।
विश्व मे प्रभाव का प्रमाण चंद्रयान है।
भूत की न बात कर है वर्तमान लिख रहा,
एक नई दृष्टि का निर्माण चंद्रयान है।

पंक्ति-पंक्ति भाव का व्यवहार चंद्रयान है।
खंड-खंड सोचों पे प्रहार चंद्रयान है।
है घिरा ये विश्व जब संक्रमण के दौर में,
इक नई उमंग है उपहार चंद्रयान है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23अगस्त, 2023

मुक्तक

मुक्तक-
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त्याग तप की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं सभी।
भाव मन में प्रेम का गढ़ रहे हैं सभी।
कौन है यहाँ कहो कष्ट जो सहा नहीं,
लेख अपने पृष्ठ का पढ़ रहे हैं सभी।

कोई पार हो गया कोई बीच धार है।
कोई इस पार है तो कोई उस पार है।
एक महीन रेख है जो बाँधती है हमें,
जो रेख ने गढ़ी कड़ी जीत है न हार है।

प्रेम मन का भाव है ये पंथ है प्रधान है।
भावना का सूर्य है ये इक नया विहान है।
कितने ग्रन्थ हैं लिखे और कितने बाकी हैं,
प्रेम ही प्रभाव है और प्रेम ही प्रमाण है।



खंडित होती रही आस्था

खंडित होती रही आस्था

हमने मन के भोजपत्र पर रेख बनाई उम्मीदों की
न जाने क्यूँ पल-पल मन की सब खंडित होती रही आस्था।

कितने दीप जलाये घी के धूप दीप बाती भी डाली
मंगल गीत सुनाये कितने कितनी आशायें कर डाली
सिंदूरी भावों से हमने अपने मन पर लेप लगाया
करके शंखनाद गीतों में हमने सोया भाव जगाया
देव बनाया पूजा प्रतिपल पल-पल मन में आस बँधाई
न जाने क्यूँ पल-पल मन की सब खंडित होती रही आस्था।

अधिकारों से पहले मन ने कर्तव्यों को सम्मुख रक्खा
जब-जब मंथन हुआ विषय का आगे बढ़कर विष को चक्खा
कोशिश लेकिन मन की अपने जाने क्यूँ कर विफल हो गयीं
भाग्य रेख की बदल न पाया मन की साँसें विकल हो गयीं
फिर भी मन की छुपा विकलता साँसों में उम्मीद बँधाई
न जाने क्यूँ पल-पल मन की सब खंडित होती रही आस्था।

भूख गरीबी बेकारी अब बीते कल की बातें लगतीं
बनी जिंदगी बाजारू अब सुविधाएं बस न्यारी लगतीं
सत्ता के गलियारों में अब मुद्दों का आभाव हो गया
मूल चेतना से भटकाना लगता यहाँ स्वभाव हो गया
लिखे भाव मन के गीतों में हमने सारी रीत निभाई
न जाने क्यूँ पल-पल मन की सब खंडित होती रही आस्था।

संविधान के अनुछेदों को हमने मन का सार बनाया
तुमने कुछ भी गाया हो पर हमने संविधान ही गाया
लेकिन कितने बादल ऐसे जिनकी धुंध न छँटी अभी तक
हर डोली पर पुष्प चढाये फिर भी खाली रही अभी तक
उँगली की स्याही में हमने जब नूतन तस्वीर बनाई
न जाने क्यूँ पल-पल मन की सब खंडित होती रही आस्था।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        20अगस्त, 2023

मौन मन के पास की

गजल- मौन मन के पास की

दूर तक परछाइयाँ हैं आपके अहसास की
मिट गई तनहाइयाँ सब मौन मन के पास की

शून्य में डूबा हृदय ये ढूँढता जिस भाव को
खुल गयी अब बंदिशें सब भाव के विन्यास की

कितने अधरों पर रुके हैं कितने पल ने कह दिए
गूँजते हैं शब्द बनकर शुन्यता में आस की

उड़ रहीं बनकर हवाएँ यादें सब आकाश में
कौन जाने किस हवा में जिंदगी अनुप्रास की

कैसे कह दूँ याद में अब मेरे तुम आते नहीं हो
जबकि बनकर गूँजती है बातें सब विश्वास की

उस एक लम्हे ने लिखी है जिंदगी की पंक्तियाँ
जिसकी चाहत में है गुजरी उम्र ये अहसास की

क्या लिखूँ मैं बिन तुम्हारे गीत या कोई गजल
कह रहीं है चाहतें अब देव दिल के पास की
 
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        18अगस्त, 2023

संकल्प

संकल्प 

आज द्वार पे उनके जाकर मौन कलम से कुछ तो बोलो
जिनके कारण आजादी का हम ये उत्सव मना रहे हैं।

व्यक्ति-व्यक्ति से पंक्ति बनी है पंक्ति-पंक्ति से बनी लकीरें
इन्हीं लकीरों के बनने से बनी राष्ट्र की तकदीरें
नमन राष्ट्र के उन वीरों को जिनकी गाथा सुना रहे हैं
आज द्वार पे.........।

रानी झाँसी, तांत्या टोपे, मंगल पांडे, वीर शिवाजी
जिनकी एक अलख ने जग से दूर करी थी सभी उदासी
लाल, बाल, पाल के प्रण ने जीवन में उम्मीद जगाई
आजाद, भगत सिंह, राजगुरु के प्रण ने नूतन राह दिखाई
जिनके कारण कितने सपने नयनों में हम जगा रहे हैं
आज द्वार पे........।

वीर सुभाष, पटेल, महामना, नेहरू, गाँधी, बाबा साहेब
जिनके त्याग समर्पण ने हमको दिन ये दिखलाया
है नमन सभी उन रणवीरों को जीना जिसने सिखलाया
हँस कर हर फंदे को चूमा और अरि को धूल चटाई है
जिनके त्याग समर्पण से नित नूतन पुष्प खिला रहे हैं
आज द्वार पे.......।

सावरकर का काला पानी भूल नहीं सकता है भारत
आजादी के पुण्य भाव को जिनके प्रण ने किया है स्वारथ
सेलुलर जेल की दीवारें जिनके कारण मुस्काई हैं
जिनके लिखे ग्रन्थ में खुलकर भारत माता मुस्काई है
जिनके लिखे राष्ट्र ग्रन्थों से भारत भूमी नहा रही है
आज द्वार पे.....।

आतंकी मंसूबों को जिन वीरों के प्रण ने तोड़ा है
प्राणों की आहुति देकर जिन वीरों ने भारत जोड़ा है
सीने पर गोली खा-खाकर भारत की शान बचाई है
जिनके खून पसीने से धरती पर हरियाली छाई है
जिनके उद्द्यम के बल से ही धरती पुष्प खिला रही है
आज द्वार पे......।

राष्ट्र विरोधी नारों को अब जड़ से हमें मिटाना होगा
इस धरती में जन्म लिया है सबको फर्ज निभाना होगा
इतिहासों से न्याय नहीं तो फिर वर्तमान पछतायेगा
भूत काल से सीख न पाये भविष्य फिर ठोकर खायेगा
वर्तमान के अभियानों से जो पथ भविष्य का सजा रहे हैं
आज द्वार पे.......।

शांति दूत हैं हम दुनिया को गीता का पाठ पढ़ाते हैं
जो जिस भाषा में समझेगा हम वैसा ही समझाते हैं
है अहिंसा परम धर्म पर धर्म की रक्षा फर्ज हमारा
राष्ट्र धर्म के पावन ध्वज से जुड़ा सभी संकल्प हमारा
राष्ट्र वाद के संकल्पों से जो जीवन का पथ सजा रहे हैं
आज द्वार पे.......।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        15अगस्त, 2023

पथिक पंथ से भटक न जाना।

पथिक पंथ से भटक न जाना।  

जीवन का है पंथ निराला
अमृत कहीं कहीं पर हाला
कहीं भीड़ के रेले होंगे
कहीं बिछड़ते मेले होंगे
मधुमित सा ये जीवन होगा
कहीं बिखरता सावन होगा
जीवन की उच्छृंखलता में
पथिक पंथ से भटक न जाना।

पथ में कंटक बिछे हजारों
पाँव चुभे हों शूल हजारों
अवरोधों के गिरि वन होंगे
पुष्पच्छादित वन भी होंगे
खारे जल का सागर होगा
मीठे जल का निर्झर होगा
धूप-छाँव की संलिप्ता में
पथिक पंथ से भटक न जाना।

मधुवेला की चाह बढ़ेगी
उन्मन मन की आह बढ़ेगी
साँसों में कुछ फिसलन होगी
आहों में भी विचलन होगी
आकर्षित लोचन, तन होंगे
मदमाते से यौवन होंगे
उन्मन मन की अभिलिप्सा में
पथिक पंथ से भटक न जाना।

विरही का जीवन भी होगा
नेह प्रतीक्षित आँगन होगा
तड़क दामिनी के सुर होंगे
सावन के घन मौसम होंगे
नेह मिलन के भाव सजेंगे
नयनों में मृदु सपने होंगे
प्रथम मिलन की उत्कंठा में
पथिक पंथ से भटक न जाना।

कितनों की संलिप्ता होगी
कितनी ही निर्लिप्ता होगी
कितने पथ आशंकित होंगे
कितने पथ अनुशंसित होंगे
जीवन पथ की पगडंडी पर
कुछ पग भी प्रतिबंधित होंगे
किंतु विकल, आशंकित होकर
पथिक पंथ से भटक न जाना।

वेदों पर आक्षेप लगेंगे
पग-पग कुरूक्षेत्र रण होंगे
मस्तक कुमकुम चंदन होंगे
अरि के घर में क्रंदन होंगे
महाकाल वेदी पर होगा
फिर से सागर मंथन होगा
निहित स्वार्थ में आनन्दित हो
पथिक पंथ से भटक न जाना।

राष्ट्र प्रथम हो भाव प्रथम हो
धर्म ज्ञान सद्भाव प्रथम हो
वेद मंत्र से गुंजित नभ हो
इक दूजे के पूरक सब हों
धर्म परायण भाव सकल हों
सत्य प्रबल हो राष्ट्र सबल हो
राष्ट्र धर्म की भाव प्रवणता
पथिक राष्ट्र का धर्म निभाना।

पथिक पंथ से भटक न जाना।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        15अगस्त, 2023


दिल की अनकही बातें

दिल की अनकही बातें

गीत अधरों पे लाते उमर ढल गयी
बात दिल की अभी तक कही न गयी।

उम्र भर जिंदगी को निहारा किये
दूर तक रास्तों को बुहारा किये
आस हर पल मिलन की लगाए रहे
जाने क्या बात थी जो छुपाए रहे
दिल का आँगन सजाते उमर ढल गयी
बात दिल...।

खुद ही दर्पण बने खुद को देखा किये
जो मिले ज़ख्म दिल को चुप-चुप सिये
अपनी परछाईं को भी छुपाते रहे
प्रतिबिंब भी नीर में हम बनाते रहे
अपनी परछाईं सजाते उमर छल गयी
बात दिल.....।

हाथ की रेख पल-पल बदलती रही
सिलवटें रात करवट बदलती रही
रात खुद लाज ओढ़े छुपती रही
साँस खुद साँस के हाथ बिकती रही
सिलवटों को छुपाते उमर ढल गयी
बात दिल....।

काल के हाट में अब खड़े हम यहाँ
मोल खुद का लगाये हुए हम यहॉं
जिंदगी किश्तों में यूँ उलझती रही
चाहतें अंजुरी से फिसलती रहीं
किश्तें सब से छुपाते उमर चल गयी
बात दिल...।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       10 अगस्त, 2023


भूले शब्द अधरों से

भूले शब्द अधरों से

थी न जाने गलतियाँ क्या शब्द सब भूले अधर से।

थे शब्द जो परिचित कभी हर पंक्तियों हर गीत से
और थे बसते हृदय में भावनाओं के मीत से
मन न जाने शब्द क्यूँ वो अब अपरिचित हो गये हैं
व्याकरण भूले सभी सब छंद शंकित हो गये हैं
थी न जाने गलतियाँ क्यूँ पंक्तियाँ बिखरी कहर से।

अल्पना दहलीज पर थी पार उसको कर न पाये
जाने कैसी चुप लगी थी भाव सिमटे कह न पाये
जो स्वप्न पलकों पर सजे सब बूँद बनकर झर गये
गीतों से उपमाओं के श्रृंगार सारे झर गये
व्यंजना बन मौन चादर रह गयी मन में उलझकर।

तार सप्तक मौन थे सब गीत में मुखड़ा नहीं था
अंतरे बिखरे सभी थे चाँद टुकड़ों में कहीं था
स्पर्श पायें उँगलियों के पलकों ने इतना ही चाहा
चाँदनी की ओट लेकर अलकों ने मुखड़ा सजाया
मौन मन की कश्तियाँ पर टूट कर बिखरी लहर से।


©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        09अगस्त, 2023


बचपन की दोस्ती

बचपन की दोस्ती

बचपन की दोस्ती का हर पृष्ठ गीत जैसा
कोई नहीं मिला है बचपन के मीत जैसा।

था पुष्प पंखुरी सा कोमल हृदय सभी का
सपनों के गाँवों में जैसे निलय सभी का
पल-पल सितार बजते थे नेह के स्वरों के
हो मुक्त भाव उड़ते मद मस्त हर क्षणों में
कोमल पलों की यादों का पृष्ठ प्रीत जैसा
कोई नहीं मिला है बचपन के मीत जैसा।

मस्तियों के दिन थे बेफिक्र थी वो रातें
आज भी बसी हैं यादों में सारी बातें
शाम ढलते लगता था दोस्तों का रेला
टोलियाँ निकलती जैसे लगा हो मेला
गालियाँ भी लगतीं सुरों के गीत जैसा
कोई नहीं मिला है बचपन के मीत जैसा।

मिलने को ढूँढता था मन कुछ न कुछ बहाना
हर पल दिलों में हलचल जैसे हो कुछ बताना
कभी शब्द स्वप्न बनते कभी स्वप्न जिंदगी
कभी स्नेह भाव दिल में, साँसों में बन्दगी
हार में भी आनंद आता था जीत जैसा
कोई नहीं मिला है बचपन के मीत जैसा।

कितने हैं रास्तों में कितने बिछड़ गये हैं
यादों की पोटली बन दिल में ठहर गये हैं
कुछ आज भी जुड़े हैं कुछ अब भी लापता
लेकिन दिलों में अब भी उनका वही पता
खोए मिले हैं जैसे यादों में गीत जैसा
कोई नहीं मिला है बचपन के मीत जैसा।

दिल की यही तमन्ना इक बार फिर मिलें हम
फिर छेड़ें वही तराने फिर संग-संग चलें हम
साइकिल की घण्टियों में फिर से गीत गाये
यादों की तितलियों को फिर चलो उड़ाएं
आ गायें जिंदगी को सपनों के गीत जैसा
फिर चलो मिलें हम बचपन के मीत जैसा।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        06अगस्त, 2023

भोर का प्रभाव

भोर का प्रभाव

भोर की रश्मियों में देखो नया गीत है
शब्द-शब्द भाव हैं औ छंद-छंद प्रीत है।

व्योम से उर्मियों ने मौन को आवाज दी
भाव के तितलियों के पंख को परवाज दी
रात की ओढ़नी से झाँकती नव रीत है
शब्द-शब्द भाव हैं औ छंद-छंद प्रीत है।

रात के प्रभाव का अब खत्म हो रहा असर
छोड़ सब विषाद कल के दिख रहा नया शिखर
इस शिखर की राह ही तेरा नया मीत है
शब्द-शब्द भाव हैं औ छंद-छंद प्रीत है।

थक के बैठ जाने में तेरी ही हार है
कर्म के बिना मिले तुझे कहाँ स्वीकार है
शूल-शूल पुष्प है सब राह-राह जीत है
शब्द-शब्द भाव हैं औ छंद-छंद प्रीत है।

है लिख रहा दिवस नये भाव की प्रधानता
घुल गया जो सांध्य में स्वभाव की महानता
लिख रही नई सुबह का सांध्य नया गीत है
शब्द-शब्द भाव हैं औ छंद-छंद प्रीत है।

इस नई सदी को हम प्रेम का उपहार दें
हर प्रहर से प्रीत लें हर प्रहर को प्यार दें
नेह का विस्तार ही मनुजता की जीत है
शब्द-शब्द भाव हैं औ छंद-छंद प्रीत है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       01 अगस्त, 2023

राम-नाम सत्य जगत में

राम-नाम सत्य जगत में राम-नाम बस सत्य जगत में और झूठे सब बेपार, ज्ञान ध्यान तप त्याग तपस्या बस ये है भक्ति का सार। तन मन धन सब अर्पित प्रभु क...