बचपन की दोस्ती

बचपन की दोस्ती

बचपन की दोस्ती का हर पृष्ठ गीत जैसा
कोई नहीं मिला है बचपन के मीत जैसा।

था पुष्प पंखुरी सा कोमल हृदय सभी का
सपनों के गाँवों में जैसे निलय सभी का
पल-पल सितार बजते थे नेह के स्वरों के
हो मुक्त भाव उड़ते मद मस्त हर क्षणों में
कोमल पलों की यादों का पृष्ठ प्रीत जैसा
कोई नहीं मिला है बचपन के मीत जैसा।

मस्तियों के दिन थे बेफिक्र थी वो रातें
आज भी बसी हैं यादों में सारी बातें
शाम ढलते लगता था दोस्तों का रेला
टोलियाँ निकलती जैसे लगा हो मेला
गालियाँ भी लगतीं सुरों के गीत जैसा
कोई नहीं मिला है बचपन के मीत जैसा।

मिलने को ढूँढता था मन कुछ न कुछ बहाना
हर पल दिलों में हलचल जैसे हो कुछ बताना
कभी शब्द स्वप्न बनते कभी स्वप्न जिंदगी
कभी स्नेह भाव दिल में, साँसों में बन्दगी
हार में भी आनंद आता था जीत जैसा
कोई नहीं मिला है बचपन के मीत जैसा।

कितने हैं रास्तों में कितने बिछड़ गये हैं
यादों की पोटली बन दिल में ठहर गये हैं
कुछ आज भी जुड़े हैं कुछ अब भी लापता
लेकिन दिलों में अब भी उनका वही पता
खोए मिले हैं जैसे यादों में गीत जैसा
कोई नहीं मिला है बचपन के मीत जैसा।

दिल की यही तमन्ना इक बार फिर मिलें हम
फिर छेड़ें वही तराने फिर संग-संग चलें हम
साइकिल की घण्टियों में फिर से गीत गाये
यादों की तितलियों को फिर चलो उड़ाएं
आ गायें जिंदगी को सपनों के गीत जैसा
फिर चलो मिलें हम बचपन के मीत जैसा।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        06अगस्त, 2023

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