मुक्तक-
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त्याग तप की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं सभी।
भाव मन में प्रेम का गढ़ रहे हैं सभी।
कौन है यहाँ कहो कष्ट जो सहा नहीं,
लेख अपने पृष्ठ का पढ़ रहे हैं सभी।
कोई पार हो गया कोई बीच धार है।
कोई इस पार है तो कोई उस पार है।
एक महीन रेख है जो बाँधती है हमें,
जो रेख ने गढ़ी कड़ी जीत है न हार है।
प्रेम मन का भाव है ये पंथ है प्रधान है।
भावना का सूर्य है ये इक नया विहान है।
कितने ग्रन्थ हैं लिखे और कितने बाकी हैं,
प्रेम ही प्रभाव है और प्रेम ही प्रमाण है।
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