गजल- मौन मन के पास की
मिट गई तनहाइयाँ सब मौन मन के पास की
शून्य में डूबा हृदय ये ढूँढता जिस भाव को
खुल गयी अब बंदिशें सब भाव के विन्यास की
कितने अधरों पर रुके हैं कितने पल ने कह दिए
गूँजते हैं शब्द बनकर शुन्यता में आस की
उड़ रहीं बनकर हवाएँ यादें सब आकाश में
कौन जाने किस हवा में जिंदगी अनुप्रास की
कैसे कह दूँ याद में अब मेरे तुम आते नहीं हो
जबकि बनकर गूँजती है बातें सब विश्वास की
उस एक लम्हे ने लिखी है जिंदगी की पंक्तियाँ
जिसकी चाहत में है गुजरी उम्र ये अहसास की
क्या लिखूँ मैं बिन तुम्हारे गीत या कोई गजल
कह रहीं है चाहतें अब देव दिल के पास की
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18अगस्त, 2023
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