पथिक पंथ से भटक न जाना।

पथिक पंथ से भटक न जाना।  

जीवन का है पंथ निराला
अमृत कहीं कहीं पर हाला
कहीं भीड़ के रेले होंगे
कहीं बिछड़ते मेले होंगे
मधुमित सा ये जीवन होगा
कहीं बिखरता सावन होगा
जीवन की उच्छृंखलता में
पथिक पंथ से भटक न जाना।

पथ में कंटक बिछे हजारों
पाँव चुभे हों शूल हजारों
अवरोधों के गिरि वन होंगे
पुष्पच्छादित वन भी होंगे
खारे जल का सागर होगा
मीठे जल का निर्झर होगा
धूप-छाँव की संलिप्ता में
पथिक पंथ से भटक न जाना।

मधुवेला की चाह बढ़ेगी
उन्मन मन की आह बढ़ेगी
साँसों में कुछ फिसलन होगी
आहों में भी विचलन होगी
आकर्षित लोचन, तन होंगे
मदमाते से यौवन होंगे
उन्मन मन की अभिलिप्सा में
पथिक पंथ से भटक न जाना।

विरही का जीवन भी होगा
नेह प्रतीक्षित आँगन होगा
तड़क दामिनी के सुर होंगे
सावन के घन मौसम होंगे
नेह मिलन के भाव सजेंगे
नयनों में मृदु सपने होंगे
प्रथम मिलन की उत्कंठा में
पथिक पंथ से भटक न जाना।

कितनों की संलिप्ता होगी
कितनी ही निर्लिप्ता होगी
कितने पथ आशंकित होंगे
कितने पथ अनुशंसित होंगे
जीवन पथ की पगडंडी पर
कुछ पग भी प्रतिबंधित होंगे
किंतु विकल, आशंकित होकर
पथिक पंथ से भटक न जाना।

वेदों पर आक्षेप लगेंगे
पग-पग कुरूक्षेत्र रण होंगे
मस्तक कुमकुम चंदन होंगे
अरि के घर में क्रंदन होंगे
महाकाल वेदी पर होगा
फिर से सागर मंथन होगा
निहित स्वार्थ में आनन्दित हो
पथिक पंथ से भटक न जाना।

राष्ट्र प्रथम हो भाव प्रथम हो
धर्म ज्ञान सद्भाव प्रथम हो
वेद मंत्र से गुंजित नभ हो
इक दूजे के पूरक सब हों
धर्म परायण भाव सकल हों
सत्य प्रबल हो राष्ट्र सबल हो
राष्ट्र धर्म की भाव प्रवणता
पथिक राष्ट्र का धर्म निभाना।

पथिक पंथ से भटक न जाना।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        15अगस्त, 2023


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