यादें
हिचकियाँ अधरों पे सजकर गीत बनकर गायेंगी।
क्या हुआ जो उस घड़ी में गीत पूरे हो सके न,
और रहकर पास भी हम पास इतने हो सके न।
दूरियाँ जब-जब भी अपने रास्ते में आएंगी,
हिचकियाँ अधरों पे सजकर गीत बनकर गायेंगी ।
एक लम्हा था जिसे हमसे सँभाला न गया,
एक लम्हा उम्र का हमसे निकाला न गया।
जब भी लम्हे दर्द बनकर उम्र को तड़पायेंगी,
हिचकियाँ अधरों पे सजकर गीत बनकर गायेंगी।
अनलिखी रह जाये न अपनी कहानी प्यार की,
हार कर भी जीत की और जीत में भी हार की।
हार ये मेरी तुम्हारे दिल को जब तड़पायेगी,
हिचकियाँ अधरों पे सजकर गीत बनकर गायेंगी।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
08 जून, 2024
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