मुक्तक

वो मौसिकी ही क्या जिसमें जिंदगी न हो।
वो शायरी ही क्या जिसमें बन्दगी न हो।
यूँ तो आशिकी के लाखों तलबगार हैं,
वो आशिकी ही क्या जिसमें तिश्नगी न हो।

घटेगी कब तलक साँसें कहीं कुछ जोड़ तो होगा।
हमारी मुश्किलों का भी कहीं कुछ तोड़ तो होगा।
भटकेगी इन राहों में अकेली जिंदगी कब तक,
कहीं तो इस कहानी का सुहाना मोड़ तो होगा।


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