राही तुम कब आओगे

राही तुम कब आओगे

चौखट पर दो ठहरी आँखें, आँचल का बना बिछौना है,
पूछ रहे हैं कोर नयन के, हे राही तुम कब आओगे।

धरती पर जब आसमान के, चिड़ियों का देखूँ छाया क्रम,
परदों की झुरमुट से उठती, इन आवाजों से होता भ्रम।
कब तक मन को समझायेंगे, हम संदेशों से पाती से,
कब तक मन को बहलायेंगे, हम मधु गीतों से पाखी के।
पूछ रहे सावन के झूले, गीत मिलन के कब गाओगे।।

बरस-बरस दिन बीत रहे हैं, ऋतुओं ने भी करवट बदली,
सूने छत के मुंडेरों से, हँसती बैठ पवन ये पगली।
झड़े हुए पत्तों की खड़-खड़, कब तक मन को भरमायेंगे,
पनघट पर सूनी गागर के, लौट दिवस कब फिर आयेंगे।
पलकों की पनघट के आँसू, कब आकर के सहलाओगे।।

धूप सताती यहाँ छाँह में, अरु शूल चुभे हैं फूलों में,
इस सिलवट से उस सिलवट तक, ये रात कट रही शूलों में।
आँखों से सपने ओझल हैं, ये बैरन रात सताती है,
चन्द्र किरण की चंचल किरणें, बस पल-पल आग लगाती हैं।
धूप सने मन के दलान में, बारिश बनकर कब छाओगे।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        15 अप्रैल, 2024


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