ढलने से पहले सांध्य प्रिये तुम आ जाना
क्या बतलाऊँ अँधियारों का, रंग अभी कितना गहरा है।
क्या बतलाऊँ तुम बिन मेरे, घर मे कितना खाली पन है,
क्या बतलाऊँ तुम बिन कितना, इन साँसों में भारीपन है।
मत जाना इतना दूर हृदय से, के टूटे ये ताना-बाना,
ढलने से पहले सांध्य प्रिये तुम आ जाना।।
तुम बिन देगा कौन सहारा, जब दर्द दाह तड़पायेगा,
कौन करेगा दूर तपन को, कौन आह को सहलायेगा।
पलकों के कोरों में गलकर, यूँ बह न जाये दिल की बात,
चौखट पर यादों के बीते, चरण पखारते सारी रात।
धुँधले होने से पहले तुम, इन यादों को सहला जाना,
ढलने से पहले सांध्य प्रिये तुम आ जाना।।
धुंध भरे मौसम में कब तक, गूंजे गीतों की शहनाई,
क्या जाने कब ढल जायेगी, इन बालों की ये कजराई।
क्या जाने कब तक बीतेगी, ये उम्र यहाँ इन पहरों में,
क्या जाने कब बह जायेगी, ये उम्र भँवर, में लहरों में।
गिनी चुनी बाकी घड़ियों में, इन साँसों को बहला जाना,
ढलने से पहले सांध्य प्रिये तुम आ जाना।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
14 अप्रैल, 2024
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