राधेय या ज्येष्ठ कौन्तेय-खण्ड काव्य-भाग-9

राधेय या ज्येष्ठ कौन्तेय-खण्ड काव्य-भाग-9

गतांक से आगे......

कुरुक्षेत्र के रण में दोनों
सेना जब सामने भयी
एक दूसरे का सामर्थ्य
आंखों से परखने लगीं।।106।।

वीरों से व अतिवीरों से
थी सुसज्जित दोनों सेना
एक ओर दर्प बड़ा था
दूजे धर्मराज की सेना।।107।।

पितामह ने कहा कर्ण से
युद्ध भूमि में नहीं जाएगा
जब तक जीवित भीष्म रहेंगे
सेनापति नहीं बन पाएगा।।108।।

दोनों पक्षों में भीषण 
संग्राम वहां होने लगा
दोनों पक्षों के अगणित
शव नित नित गिरने लगा।।109।।

भीष्म, द्रोण जैसे महारथी
एक एक कर  परास्त हुए
विचलित देख दुर्योधन को
कर्ण उसे ढांढस दिए।।110।।

युद्ध के दौरान सभी
नैतिकता सारे पस्त हुए
अभिमन्यु का वध करने
प्रतिमान सारे ध्वस्त हुए।।111।।


अर्जुन वध के लिए कर्ण ने
आसुर व्रत अनुष्ठान किया
युद्ध के सोलहवें दिन फिर
उसे सेनापति नियुक्त किया।।112।।

अर्जुन के अतिरिक्त कर्ण ने
पाण्डवों को पराजित किया
कुंती के वचन फलस्वरूप
नहीं किसी का वध किया।।113।।

युद्ध में हो पराजित जब
सभी शिविर में चले गए
मद में चूर दुर्योधन तब
डींगें फिर हांकने लगे।।114।।

पर कर्ण को था बोध 
संवाद नही अब रण होगा
अर्जुन से उसके युद्ध का
परिणाम बड़ा भीषण होगा।।115।।

क्रमशः.......

©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...