गतांक से आगे......
कर्ण युग का महा दानवीर था
उस जैसा उस क्षण कोई नहीं था
अपनी दानशीलता से उसने
अगणित को सुख पहुंचाया था।।85।।
रवि पूजन पश्चात वहां
जो कोई भी आता था
कर्ण उसे मुँहमाँगा देता
रीते नहीं लौटाता था।।86।।
इंद्र ने धर वेश विप्र का
कुंडल-कवच कर्ण से मांगा
सहर्ष समर्पित किया कर्ण ने
निराश नहीं उनको लौटाया।।87।।
सूरज अपना तेज त्याग दे
शीतलता भी चन्द्र त्याग दे
अटल प्रतिज्ञा थी कर्ण की
निराश न जाये कोई द्वार से।।88।।
इंद्र के व्यवहार से पहले
कर्ण कुछ विचलित हुआ
कवच-कुंडल बिना हराऊँगा
उसने प्रण सुनिश्चित किया।।89।।
दानशीलता देख कर्ण की
इंद्र को भी क्षोभ हुआ
शक्ति वरदान दिया फिर
जो एक प्रयोग में लुप्त हुआ।।90।।
युद्ध निश्चिवत हो जाने पर
कुंती का मन व्याकुल हुआ
पुत्रों के मध्य युद्ध रोकने का
उसने फिर निश्चय किया।।91।।
समझाने कर्ण को फिर
कुंती उसके पास गई
कुंती को देख पास अपने
शीश श्रद्धा से झुक गया।।92।।
प्रथम बार आईं हैं आप यहां
राधेय का प्रणाम स्वीकार करें
हृदय बींध गया बातों से उसकी
ज्येष्ठ कौन्तेय आशीष स्वीकार करें।।93।।
मैं तुम्हारी जननी हूँ
मैंने ही तुमको जाया है
लोकाचार के भयवश
मैंने तुमको त्यागा था।।94।।
भूल हुई मुझसे कौन्तेय
मैं तुम्हारी अपराधी हूँ
सच कहती हूँ याद में तेरी
रात-रात भर जागी हूँ।।95।।
ज्येष्ठ कौन्तेय होने के कारण
साथ नही दुर्योधन का देना
अन्याय के प्रतिकार के लिए
साथ पाण्डवों के तुम रहना।।96।।
मेरी है इच्छा यही अब
निवेदन मेरा स्वीकार करो
युद्ध जीत कर कौरव से
सिंहासन स्वीकार करो।।97।।
कर्ण ने तब बोला मां से
जन्मते ही तुमने त्याग दिया
सूतपुत्र कहलाया जब जब
दुर्योधन ने साथ दिया।।98।।
सूतपुत्र होने के कारण
पग-पग पर अपमान हुआ
जब सबने दुत्कारा मुझको
तुमने भी न मान दिया।।99।।
दुर्योधन के उपकारों पर
आघात नहीं मैं कर सकता
जीवन की लालसा में अपने
कृतध्न नहीं मैं बन सकता।।100।।
मैं वचन बद्ध हूँ दुर्योधन से
जिसने मुझको सम्मान दिया
जग ने अपमान किया जब
बस उसने ही साथ दिया।।101।।
किंतु आना यहां आपका
व्यर्थ नहीं जाने पायेगा
वचनबद्ध होता हूँ आपसे
पाण्डव पांच ही रह जायेगा।।102।।
अर्जुन के अतिरिक्त यहां मैं
नहीं किसी पे वार करूंगा
हार सुनिश्चित हुई देख
मृत्यु का मैं वरण करूंगा।।103।।
इस युद्ध में प्रण है माता
मृत्यु दो में एक की होगी
है यही प्रतिज्ञा मेरी आपसे
माता पांच पुत्रों की रहेंगी।।104।।
सुनकर बातें कर्ण की
कुंती निरुत्तर हो गयी
हृदय में व्यथा लिए
नम आंखों से चली गयी।।105।।
क्रमशः......
©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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