गतांक से आगे.......
बहुप्रतीक्षित निर्णायक दिन
युद्ध का आखिर आ गया
अर्जुन की क्षति की खातिर
कर्ण ने भार्गवास्त्र चला दिया।।116।।
भार्गवास्त्र का प्रभाव तेज था
सब छिन्न-भिन्न होने लगे
सेना में हाहाकार मची तब
सब अर्जुन के पास गए।।117।।
भार्गवास्त्र की काट वहां
असंभव था सबके लिए
यदि अर्जुन रण से भागेगा
भार्गवास्त्र कर्ण वापस लाएगा।।118।।
फिर कृष्ण ने अर्जुन के
पलायन का मार्ग बनाया
भागते देख अर्जुन को
भार्गवास्त्र वापस लाया।।119।।
दोनों पक्षों की सेना के
महान शूरवीर थे लड़ रहे
रुक गयी अवनि जैसे
देवलोक भी जड़ गए।।120।।
बाणों की वर्षा से दोनों
इक दूजे को घात रहे
कोई नहीं ढीला पड़ता
वक्त वहीं ठहर गया।।121।।
दोनों का संग्राम बड़ा था
आखिर उनका नाम बड़ा था
बाणों की वर्षा से सारे
अवनि-अंबर ढंक गए।।122।।
अर्जुन के बाण कर्ण के
रथ पर थे बरसने लगे
उन बाणों के फलस्वरूप
रथ कई गज खिसकने लगे।।123।।
पर कर्ण के बाणों से केवल
कुछ बलिश्त ही खिसका पाया
कृष्ण ने करी प्रशंसा उसकी
अर्जुन को हतप्रभ अचंभित पाया।।124।।
क्या उसके वार सभी
मेरे वार पर हावी हैं
ऐसा क्या है किया कर्ण ने
जिससे आप प्रभावित हैं।।125।।
उसके रथ पे भार मात्र शल्य का है
तुम्हारे रथ स्वयं हनुमान विराजे
इतनी शक्ति वारों में उसके
जो उनका भी रथ खिसका दे।।126।।
कितनी ही बार युद्ध में दोनों ने
इक दूजे की प्रत्यंचा काट दिया
नागास्त्र प्रयोग किया जब कर्ण ने
माधव ने अर्जुन का रथ धँसा दिया।।127।।
नागास्त्र विफल होता देख कर
अश्वसेना नाग ने निवेदन किया
पर माता कुंती के वचनस्वरूप
पुनः प्रयोग को मना किया।।128।।
यद्दपि युद्ध गतिरोध पूर्ण था
पर कर्ण उस पल उलझ गया
जब उसके रथ का पहिया
धरती में जाकर धँस गया।।129।।
वह अपने दैवी अस्त्रों का
प्रयोग नहीं कर पाता था
गुरु के श्राप के कारण
असमर्थ स्वयं को पाता था।।130।।
तब किया निवेदन कर्ण ने
कुछ पल युद्ध को रोक दे
रथ का पहिया निकलने तक
अर्जुन उसको एक मौका दे।।131।।
कृष्ण ने कहा पार्थ से---
युद्ध नियम की बातें करने का
उसको है अधिकार नहीं
अभिमन्यु वध के पल में क्या
नियम उसे था याद नहीं।।132।।
भरी सभा में जब उसने
पांचाली का अपमान किया
एक नारी के वस्त्र हरण पर
धर्म उसका था कहां गया।।133।।
अब धर्म की बातें करने
है उसका अधिकार नहीं
कर्ण का वध करना अब
है यहां कोई अपराध नहीं।।134।।
यदि अभी कर्ण को न मारे तो
युद्ध कभी न जीत पाओगे
सत्य पुनः संकट में होगा
धर्म नहीं फिर ला पाओगे।।135।।
तब अर्जुन ने दिव्यास्त्र के द्वारा
सर कर्ण का धड़ से अलग किया
ज्योति कर्ण के धड़ से निकली
जो सूर्य में जाकर समाहित हुआ।।136।।
कर्ण ऐसा योद्धा था जग में
जो कभी-कभी ही आते हैं
कितनी भी विषम स्थिति हो
अपना आत्मबल दिखलाते हैं।।137।।
कर्ण भले ही दानवीर था
शूरवीर था, युद्धवीर था
अनैतिकता का साथ निभाकर
नैतिकता पर आघात किया।।138।।
संघर्षरत मानव की खातिर
कर्ण सदा प्रतिमान रहेगा
सत्य, धर्म जो भी त्यागेगा
कर्ण जैसा परिणाम सहेगा।।139।।
जीवन अपना अमूल्य निधि है
इसका तुम सम्मान करो
सत्य ही शिव, शिव ही सुंदर
इसी भाव का ध्यान धरो।।140।।
इतिश्री
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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