राधेय या ज्येष्ठ कौन्तेय - खंड काव्य -भाग-5
गतांक से आगे। .......
गतांक से आगे। .......
परशुराम से शिक्षा खातिर
था उसने आघात किया
छिपाकर परिचय अपना
शिक्षा उनसे प्राप्त किया | | 40 ||
एक दिन कानन में
गुरुवर विश्राम कर रहे
कर्ण के उरु पर सर रख
गुरुवर विश्रान्ति कर रहे ||41||
विश्राम भंग न हो गुरु की
कर्ण चिंतन में लीन हुआ
विषकीट कहीं से तभी एक
आसन के नीचे उदित हुआ ||42||
लगा काटने कर्ण के उरु को
बहते रक्त को रोके कैसे
धर्मसंकट बड़ा विकट था
विश्राम गुरु का तोड़े कैसे||43||
बैठा रहा अटल अविचल वो
दर्द, तड़प,पीड़ा को रोके
लहू की गर्म धार बह निकली
परशुराम विस्मित तब जागे ||44||
सहनशीलता इतनी तुझमें
विप्र नहीं तू हो सकता
इतनी असह्य वेदना
क्षत्रिय ही सह सकता ||45||
शीघ्र बता परिचय अपना
वरना इसका फल पायेगा
मेरी क्रोधाग्नि से तत्क्षण
भस्म यहां तू हो जायेगा ||46||
सूतपुत्र कर्ण हूँ मैं
करुणा का आकांक्षी हूँ
शिक्षा का उद्देश्य लिए
मैं कृपा का अभिलाषी हूँ||47||
जानकर गुरुवर परिचय मेरा
था उसने आघात किया
छिपाकर परिचय अपना
शिक्षा उनसे प्राप्त किया | | 40 ||
एक दिन कानन में
गुरुवर विश्राम कर रहे
कर्ण के उरु पर सर रख
गुरुवर विश्रान्ति कर रहे ||41||
विश्राम भंग न हो गुरु की
कर्ण चिंतन में लीन हुआ
विषकीट कहीं से तभी एक
आसन के नीचे उदित हुआ ||42||
लगा काटने कर्ण के उरु को
बहते रक्त को रोके कैसे
धर्मसंकट बड़ा विकट था
विश्राम गुरु का तोड़े कैसे||43||
बैठा रहा अटल अविचल वो
दर्द, तड़प,पीड़ा को रोके
लहू की गर्म धार बह निकली
परशुराम विस्मित तब जागे ||44||
सहनशीलता इतनी तुझमें
विप्र नहीं तू हो सकता
इतनी असह्य वेदना
क्षत्रिय ही सह सकता ||45||
शीघ्र बता परिचय अपना
वरना इसका फल पायेगा
मेरी क्रोधाग्नि से तत्क्षण
भस्म यहां तू हो जायेगा ||46||
सूतपुत्र कर्ण हूँ मैं
करुणा का आकांक्षी हूँ
शिक्षा का उद्देश्य लिए
मैं कृपा का अभिलाषी हूँ||47||
जानकर गुरुवर परिचय मेरा
शिक्षा आप मुझे न देते
झूठा हूँ अपराधी हूँ मैं
क्षमा दान मुझे दे दीजे।।48।।
परशुराम के चरणों में
साक्षात दंडवत हो गया
जीवन चरणों में त्यागूंगा
जीवनदान नहीं मांगूंगा 49||
देख कर्ण की त्याग,तपस्या
गुरु भी विचलित हो बैठे
झूठ बोल विद्या ली उसने
श्राप इसलिए दे बैठे ||50||
प्राणदान दे रहा तुम्हें
पर शिक्षा हर लेता हूँ
विद्या का अंतिम चरण
तेज सभी हर लेता हूँ ||51||
सिखलाया है जो भी विद्या
उचित समय भूल जायेगा
ब्रम्हास्त्र लिया है जो तूने
काम नहीं तेरे आएगा ||52||
गुरुवर के श्राप से व्याकुल
साक्षात दंडवत हो गया
जीवन चरणों में त्यागूंगा
जीवनदान नहीं मांगूंगा 49||
देख कर्ण की त्याग,तपस्या
गुरु भी विचलित हो बैठे
झूठ बोल विद्या ली उसने
श्राप इसलिए दे बैठे ||50||
प्राणदान दे रहा तुम्हें
पर शिक्षा हर लेता हूँ
विद्या का अंतिम चरण
तेज सभी हर लेता हूँ ||51||
सिखलाया है जो भी विद्या
उचित समय भूल जायेगा
ब्रम्हास्त्र लिया है जो तूने
काम नहीं तेरे आएगा ||52||
गुरुवर के श्राप से व्याकुल
हतप्रभ कर्ण विकल हुआ
ऐसा श्राप देकर गुरुवर
प्रण मेरा क्यूं हर लिया।।53।।
श्राप अटल है, अविचल है
तुम्हें वहन अब करना है
कवच-कुंडल धारी तुम हो
स्वयं दीप्तीवान रहना है।।54।।
कवच-कुंडल धारी तुम हो
तुम्हें हरा न कोई पायेगा
उच्च व्यवहार किया वरण तो
जीत नहीं कोई पायेगा।।55।।
ऐसा कहकर परशुराम जब
प्रस्थान को तैयार हुए
अश्रुधार से चरण धोकर
गुरुदक्षिणा दान दिए।।56।।
झूठ बोल, कपट ले मन में
शिक्षा प्राप्त न हो सकता
उद्देश्य चाहे जैसा भी हो
मंतव्य सफल न हो सकता।।57।।
ईर्ष्या द्वेष भरा जब मन में
क्रोध, संताप हावी हृदय में
बुद्धि , विवेक हर लेता है
क्रोध नियंत्रित करता मन को।।58।।
शिक्षा का औचित्य नहीं
तब कोई रह जाता
विवेकहीन हो जाता जीवन
औचित्य नहीं कुछ रह जाता।।59।।
क्रमशः.........
©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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