गतांक से आगे......
द्रौपदी के स्वयंवर में
फिर उसका अपमान हुआ
सूतपुत्र कह द्रुपदसुता ने
वरण करने से इनकार किया।।60।।
भरी सभा मे अपमानित हो
मन ही मन वो कुपित हुआ
अर्जुन की बर्बादी का फिर
उसने मन मे प्रण लिया।।61।।
द्यूत क्रीड़ा के छल में
वो दुर्योधन का साथी था
शकुनि की कुटिल चाल का
स्वयं वो भी साक्षी था।।62।।
द्यूत क्रीड़ा में पांडव जब
अपना सब कुछ हार गए
द्रौपदी को दांव लगाया
उसको भी जब हार गए।।63।।
भरी सभा में जब दुर्योधन ने
पांचाली का अपमान किया
अट्टहास किया तब उसने
वेश्या उसको नाम दिया।।64।।
दासी है पांचाली यहां
इसको अब निर्वस्त्र करो
हार चुके पाण्डव सब कुछ
इससे ही मन मुदित करो।।65।।
द्रौपदी का चीर हरण
दुःशासन जब करने लगा
किया ध्यान केशव का
तब चीर रूप प्रकट हुआ।।66।।
लिया शपथ पाण्डवों ने
सबका वो संहार करेंगे
जिसने भी अपमान किया
नहीं उन्हें वो माफ करेंगे।।67।।
दुर्योधन के अन्याय में
कर्ण भी साथी बन गया
अत्याचारी का साथ निभा
खुद अत्याचारी बन गया।।68।।
कर्ण की सारी शिक्षा
व्यर्थ वहां पर हो गयी
विवेकशून्य हो गया वहां
नैतिकता उसकी गिर गयी।।69।।
इसका परिणाम बहुत भारी था
बोझ नही कोई उठा सका
एक सती के क्रंदन का
मोल कोई कब चुका सका।।70।।
क्रमशः........
©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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