जरासंध वध

      जरासंध वध।                                        

मय दानव के सहयोग से
सभाभवन का निर्माण किया
शुभ मुहूर्त देख के तब
युधिष्ठिर का राज्याभिषेक किया।।

राजसूय यज्ञ की आवश्यकता
नारद श्री ने तब सलाह दिया
पर जरासंध है यज्ञ का बाधक
माधव ने तब संकेत किया।।

बड़ा क्रूर , निर्दयी है वो
उसने आतंक मचाया है
वीरों से अतिवीरों को
उसने बंदी बनाया है।।

राजसूय यदि करना है
तो खुद को तैयार करो
यज्ञभूमि जाने से पहले
जरासंध को परास्त करो।।

युद्ध विजय का उद्देश्य लिए
तब ब्राम्हण का वेश धरे
सहित अर्जुन-भीम के, माधव
जरासंध के दरबार गए।।

ब्राह्मण समझ करके उनको
जरासंध ने सत्कार किया
राजसूय यज्ञ की खातिर तब
भीम ने युद्ध के लिए ललकार दिया।।

कई बार अवसर वो आया
जब भीम ने उसे हराया था
चीर करके धड़ को उसके
उसे नर्क लोक पहुंचाया था।।

पर था ऐसा वरदान उसे
सशरीर पुनः वो जुड़ जाता
युद्ध विजय की हर कोशिश को
भीम के वो मिटा जाता।।

उन दोनों का युद्ध बड़ा था
सबके पसीने छूट गए
लड़ते-लड़ते दोनों को 
जब तेरह दिन बीत गए।।

किया इशारा तब माधव ने
ऐसे न उसे हरा पाओगे
चीर के अलग दिशा में धड़ को
जब फेंकोगे तब विजय पाओगे।।

दिन चौदहवाँ जब आया
तब जरासंध कुछ थका दिखा
चीर के धड़ को दो भागों में
भीम ने अलग दिशा में फेंक दिया।।

जरासंध की मृत्यु से हर्षित
तब सारा साम्राज्य हुआ
मुक्त हुए बंदी सब राजा
राजसूय का सम्मान किया।।

अजय कुमार पाण्डेय

हैदराबाद


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