पीर से पत्थरों को पिघलते हुए, देख पलकों के अश्रु वहीं रुक गये
रह गयी कुछ कहानी कही अनकही,
पृष्ठ पर कुछ लिखे कुछ लिखे ही नहीं।
उम्र अपनी कहानी छुपाती रही,
कुछ कहे शब्द ने कुछ कहे ही नहीं।
उम्र भर आह को मौन हँसते हुए, देख पलकों के अश्रु वहीं रुक गये।
रक्त बहता रहा अश्रु के कोर से,
लोग अनगिन कहानी बनाते रहे।
ताने कितने सहे हर गली मोड़ से,
आह में द्वंद हर पल मिटाते रहे।
अश्रु में रक्त को मौन रिसते हुए, देख पलकों के अश्रु वहीं रुक गये।
किंतु हर पल हृदय को सताती रही,
मौन न बन सकी कोई जादूछड़ी।
हर घड़ी पीर आँचल छुपाती रही,
जिसे कहते रहे लोग जादूगरी।
मन अखय पात्र में दर्द रखते हुए, देख पलकों के अश्रु वहीं रुक गये।
घिर गई नाव जब बीच मँझधार में,
लहर की धार ने जब किनारा किया।
छोड़ कर चल दिये जब सभी राह में,
दर्द ने ही मुझे तब सहारा दिया।
पीर में प्रीत को यूँ महकते हुए, देख पलकों के अश्रु वहीं रुक गये।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
19 जुलाई, 2025
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