दिल कहो क्या करे
आस हो टूटती दिल कहो क्या करे।
सूनी आँखों हैं प्रश्न कितने छुपे,
अपनी साँसें भी तीर बन जब चुभे।
हों सभी मोड़ पर झूठ से सामना,
मन कैसे करे फिर कोई कामना।
बह रहे दर्द हों जब नयन कोर से,
व्यर्थ हों अश्रु फिर दिल कहो क्या करे।
लम्हे सदियों को जब भुलाने लगे,
लोरियाँ नींद से जब जगाने लगे।
सत्य से जब बड़ा झूठ होने लगे,
मन में सत्ता की भूख होने लगे।
झूठ जब श्रेष्ठ हो द्यूत के जोर से,
सत्य धूमिल रहा दिल कहो क्या करे।
द्रौपदी फिर खड़ी आज दरबार में,
लग रही लाज की बोली व्यवहार में।
द्यूत का घाव फिर आज गहरा हुआ,
हर गली-मोड़ पर धुंध पसरा हुआ।
हो उजाला न दिखता किसी छोर पे,
मौन हों श्रेष्ठ जन दिल कहो क्या करे।
तंत्र हो जब विफल आस किससे करे,
मंत्र हों जब कुफल बाँह किसकी धरे।
कौन है अब यहाँ जो पढ़े मौन को,
और पूछे सफर में कि तुम कौन हो।
जब हवा ने किनारा किया मौज से,
बीच मँझधार में दिल कहो क्या करे।
शीर्ष ही जब स्वयं निम्न बनने लगे,
शीर्ष का दंभ बन शूल चुभने लगे।
जब स्याही ही तकदीर लिखने लगे,
जब हृदय को सभी प्रश्न चुभने लगे।
शीर्ष के नेत्र में प्रश्न जब गौड़ हों,
और उत्तर न हो दिल कहो क्या करे।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
31 जुलाई, 2025
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