श्री भरत व माता कैकेई संवाद
अनहोनी कुछ हुई वहाँ पर ये सोच कलेजा काँप गया।।1।।
जिस गली गुजरते भरत आज हर गलियाँ सूनी लगती थीं।।
आज अवध की सारी नजरें उस कोमल मन को चुभती थीं।।2।।
क्या हुआ शत्रुघन आज अवध को क्यूँ ऐसे हमको तकते हैं।।
कुशल क्षेम की बातें छोड़ो मुख फेर सभी क्यूँ चलते हैं।।3।।
देख घृणा के भाव नजर में दोनों का मन अकुलाता है।।
अनहोनी कुछ हुई अवध में मन डर से बैठा जाता है।।4।।
भरत देखते थे जिस ओर वहाँ
येनजर जिधर भी जाती थी
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