किसकी बाट निहारूँ

किसकी बाट निहारूँ

जब पलकों की पंखुरियों से, यादें घन बन झर-झर बरसें,
इतना तो बतला दो मुझको, उस पल किसकी बाट निहारूँ।

अपने-अपने आँचल में सब, अपनी दुनिया ले खोये हैं,
आसमान के चाँद सितारे, मेरी रातों के सोये हैं।
हर सिलवट में चीख रही है, मेरे सपनों की आवाजें,
मौन हुए अरमान सभी यूँ, अधरों पर अब किसको साजें।

जब आँचल से अरमानों की प्यास बूँद बन झर-झर बरसे,
इतना तो बतला दे मुझको, उस पल किसका नाम पुकारूँ।

गाऊँ कैसा गीत कि जिससे, पत्थर दिल विह्वल हो जाये,
कैसे कहो मनाऊँ जिससे, साँसों को संबल मिल जाये।
गली-गली घूमूँ बंजारा, बैरन अपनी परछाईं है,
किसे दिखाऊँ पीर हृदय की, सूनी मन की अँगनाई है।

जब परछाईं स्वयं विलग हो, अपनी ही छाया में झुलसे,
इतना तो बतला दे मुझको, उस पल किसकी छाँव निहारूँ।

टूट गया दर्पण अंतस का, जाने किसकी नजर लगी है,
होगी सबकी रात चाँदनी, अपने आँगन धूप जगी है।
रात चाँदनी लिपट नयन से, आँसू से पग धोये कब तक,
सूने सपनों की आहों को, नयन कोर ये ढोये कब तक।

छोटे से जीवन के सपने, कहो हृदय में जब-जब हुलसें,
इतना तो बतला दे मुझको, उस पल किसको बाँह पसारूं।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       10 जून, 2025

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