गीत हम लिखते रहेंगे
वाहिनी के तीव्र पथ से मौन उस अंतिम लहर तक।
व्याकरण से शब्द चुनकर लेखनी प्रतिबद्धकर के,
भाव को आकार देकर गीत हम लिखते रहेंगे।
जो नजर गमगीन होगी भाव हम उसके लिखेंगे,
हर होठ के अनुरोध को शब्द हम देकर रहेंगे।
हम नहीं उस ओर जो वक्त संग-संग साज बदलें,
देख रुख बहती हवा का मौसमों के साथ चल लें।
भाव को आकार देकर होठ से अनुबंध कर के,
साज में ढलते रहेंगे गीत हम लिखते रहेंगे।
जो गली वीरान होगी रोशनी गमगीन होगी,
आँधियों में दीपिका की लौ उलझकर हीन होगी।
रश्मियों की जब अँधेरों से कहीं होगी लड़ाई,
सत्य को अवरुद्ध कर के झूठ की होगी बड़ाई।
झूठ पर प्रतिबंध करके सत्य से अनुबंध कर के,
दीप बन जलते रहेंगे गीत हम लिखते रहेंगे।
चाहता है कौन आना शौक से दुख के नगर में,
कौन चलना चाहता है कंटकों के इस सफर में।
चाहता हूँ लौट जाऊँ छोड़ कर सब कुछ यहाँ से,
किंतु कैसे लौट जाऊँ गीत गाये बिन यहाँ से।
तोड़ कर के बंध सारे नेह से संबन्ध कर के,
प्रेम से मिलते रहेंगे गीत हम लिखते रहेंगे।
कुरु सभा की साजिशों से मौन हो जो जा चुके हैं,
द्यूत में भी चोट खाकर धर्म जो पछता चुके हैं।
ढूँढकर उनको यहाँ पर मुख्य पथ से जोड़ना है,
झूठ के आडंबरों को आज हमको तोड़ना है।
साजिशों से द्वंद्व करके द्यूत को प्रतिबंध करके,
जीत हम लिखते रहेंगे गीत हम लिखते रहेंगे।
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
04 अप्रैल, 2025
हैदराबाद
वाहिनी- नदी
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