देश मेरे
मेरी साँसों की आहट में बस नाम बसा है तेरा,
वो शब्द कहाँ से लाऊँ मैं गुणगान कर सकूँ तेरा।
मुकुट हिमालय माथ सजा है चरणों में सागर तेरे,
पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण सपनों के लाखों घेरे।
तेरी मुस्कानों से होता सारे जग में उजियारा,
साँसों का हर कतरा-कतरा हमने तुझ पर है वारा।
तेरे चरणों में अर्पित है हर कतरा-कतरा मेरा,
वो शब्द कहाँ से लाऊँ मैं गुणगान कर सकूँ तेरा।
गंग यमुन की धार हृदय को सिंचित कर करती पावन,
दक्षिण गंगा कावेरी से होता भारत मन भावन।
विंध्य सतपुड़ा अंग सजाते जीवन की अँगनाई में,
कितने भाव मनोहर पनपे बहती इस पुरवाई में।
साँसों का हर तार समर्पित हर सपना-सपना तेरा,
वो शब्द कहाँ से लाऊँ मैं गुणगान कर सकूँ तेरा।
शस्य श्यामला धरती माता औ हरियाली है गहना,
माटी-माटी सोना उगले हर पलकों में है सपना।
प्रेम समर्पण सार ग्रन्थ के इस जीवन की परिभाषा,
सत्य शिवम सुंदर भावों से है गुंजित नभ की भाषा।
ज्ञान ध्यान का तुंग शिखर तू जो करे दूर अंधेरा,
वो शब्द कहाँ से लाऊँ मैं गुणगान कर सकूँ तेरा।
तेरी माटी में मिल जाऊँ बस इतना सा है सपना,
सारे जगत में कोई नहीं है तुझसा मेरा अपना।
करूँ गीत सब तुझे समर्पित बस तुझको ही मैं गाऊँ,
जब भी मैं मानव तन पाऊँ तेरी ही गोदी पाऊँ।
साँस-साँस मेरे जीवन की सब कतरा-कतरा तेरा,
वो शब्द कहाँ से लाऊँ मैं गुणगान कर सकूँ तेरा।
देश मिरे तेरे कदमों में साँस समर्पित मेरा,
वो शब्द कहाँ से लाऊँ मैं गुणगान कर सकूँ तेरा।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
09 अगस्त, 2024
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