ऐसा अपना प्रेम नहीं

ऐसा अपना प्रेम नहीं

होगा आश्रित कहीं प्रेम कुछ शब्दों के अनुबन्धन में,
पर शब्दों में बँध जाये ऐसा अपना प्रेम नहीं है।

प्रेम हमारा पूर्ण गीत है सारे छंद समर्पित हैं,
शब्द व्याकरण के बौने इसके सम्मुख अर्पित हैं।
होगा आश्रित कहीं प्रेम मात्राओं के अनुबन्धन में,
पर मात्रा में बँध जाये ऐसा अपना प्रेम नहीं है।

कुछ यादें हैं कुछ वादें हैं कुछ में स्नेहिल बातें हैं,
कुछ में भाव प्रतीक्षा के हैं कुछ में नेहिल रातें हैं।
होगा आश्रित कहीं प्रेम कुछ यादों के अवगुंठन में,
पर यादों तक रह जाये ऐसा अपना प्रेम नहीं है।

उत्सुकता में प्रेम मिलन की पल-पल रातें जागी हैं,
पलक पाँवड़े द्वार बिछाये उम्मीदें भी माँगी हैं।
होगी आश्रित कहीं रात बस प्रेम मिलन के बंधन में,
प्रेम मिलन तक रह जाये ऐसा अपना प्रेम नहीं है।

पथ में काँटे कहीं मिलें अवरोध कहीं पर पर्वत से,
कहीं विपत का गहरा सागर कहीं पंथ के कंटक से।
कितने कंटक भले पंथ में अपने इस जीवन वन में,
अवरोधों से डर जाए ऐसा अपना प्रेम नहीं है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       04 अगस्त, 2024

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