था शायद तुमसे मेल यहीं तक

था शायद तुमसे मेल यहीं तक

एक अधूरी आशा लेकर एक अधूरापन जीना,
पलकों द्वारा आँसू अपने घूँट-घूँट कर के पीना।
सूने तन की दीवारों पर अंकित है कहीं निशानी,
कुछ यादों तक सीमित है तेरी मेरी सभी कहानी।

जब रही अधूरी सभी कहानी वादा कोई क्या करता,
जब था तुमसे मेल यहीं तक और शिकायत क्या करता।

बिखरे ख्वाब अधूरी रातें पुष्प सभी मुरझाए थे,
खंडित चंदा की चौखट पर तारे शीश झुकाए थे।
मौन सफर पर चली अकेली कब तक रात ठहर पाती,
रहे अधूरे गीत अधर पे रात उसे कैसे गाती।

रात अधूरी गीत अधूरे गाकर के मन क्या करता,
जब था तुमसे मेल यहीं तक और शिकायत क्या करता।

अनकहे विदाई गीतों में गीत हमारा शामिल है,
बलखाती लहरों को अब भी तकता कोई साहिल है।
गीतों के उस मुक्त छंद में कोई गीत अधूरा है,
गीत अधर पर जो खिल जाए वही गीत अब पूरा है।

रह गए अधूरे गीतों से कोई कब तक मन भरता,
जब था तुमसे मेल यहीं तक और शिकायत क्या करता।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        09 अगस्त, 2024

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