मुक्तक, शायरी

मुक्तक

मेरे जीवन के साँसों की तू डोर है।
मैं हूँ राही तो मंजिल का तू छोर है।
कब अकेला रहा मैं इस दिल के सफर में,
जो मैं हूँ पतंग तू ही मेरी डोर है।
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तकदीर का रुख इस कदर मोड़ लूँ
तू मुझे ओढ़ ले मैं तुझे ओढ़ लूँ
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बिन तेरे रास्ते अजनबी है सभी।
रिश्ते नाते यहाँ अजनबी हैं सभी।
एक तुझसे जुड़ी सारी साँसें मेरी,
बिन तेरे साँसें भी अजनबी हैं सभी।
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बिन तेरे खुद से ही खुद को खोया हूँ मैं
देख न ले कोई आँसू मेरे इसलिए बरसात में रोया हूँ मैं

भींग जाता हूँ यादों की बारिश में जब
तेरी यादों को संग-संग भिंगोया हूँ मैं

कैसे कह दूँ के सपना कोई देखा नहीं
तेरे सपनों को अब तक सँजोया हूँ मैं

दूर जा कर भी देखा मैं यादों से तेरी
दूर रह कर भी यादों में खोया हूँ मैं

कैसे कह दूँ मैं रोया नहीं आज तक
फिर उसी मोड़ पर जा के रोया हूँ मैं
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कुछ भाव हृदय के बाहर हैं कुछ भाव हृदय के भीतर।
कुछ आह दूर से दिख जाती कुछ आह हृदय के भीतर।
बाँध सका कब बंध जलधि को कितने जतन उपाय किये,
एक जलधि बाहर लहराया और एक हृदय के भीतर।
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भोर की उर्मियों में नया गीत है।
साँस की नर्मियों में नई प्रीत है।
राह जो बंद थी अब सभी खुल रही,
रश्मियाँ लिख रहीं नया संगीत है।
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छुपाओगे कहो कब तक दर्द, ये आँखे बोल ही देंगी।
तुम्हारे दिल में है जो बात, ये बातें बोल ही देंगी।
कोई होगा जो समझेगा के दिलों में दर्द है कितना,
अब छुपाओ लाख दर्द कितना ये आँखें बोल ही देंगी।
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छुपाना भी तुम्हीं से है दिखाना भी तुम्हीं को है।
हटाना भी तुम्हीं से है जताना भी तुम्हीं को है।
रहेंगे दूर कब तक हम जो रस्ता एक है अपना,
निभाना भी तुम्हीं से है बताना भी तुम्हीं को है।
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हाँ कभी यूँ ही तुम पास आकर के देखो।
बात दिल में जो है वो बताकर के देखो।
यूँ बेसहारा रहेंगे मिरे गीत कब तक,
साथ मेरे इन्हें गुनगुनाकर के देखो।
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जाने कितनी हसरत लिए जीया करता हूँ।
खुद से वादा मैं हर रोज कीया करता हूँ।
जख्म कितने भी मिले मुझे जमाने में यहाँ,
सारे जख्मों को हर रोज सीया करता हूँ।
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एक तन्हा नहीं मैं अकेला सफर में,
और भी मेंरे जैसे मुसाफिर यहाँ हैं।
आ चलें साथ में दो कदम उस गली तक,
कहने वाले यहाँ अब मुसाफिर कहाँ है।
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मौन नयनों की चितवन से कहने लगे।
अश्रु पलकों की चिलमन से बहने लगे।
चाहा जो दर्द अधरों पे आया नहीं,
इन पंक्तियों में वही गीत रचने लगे।
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जिस घड़ी आँख मेरी ये नम हो गयी
पीर इस दिल की थोड़ी सी कम हो गयी

बात यूँ ही जो निकली थी लब से मेरे
बात वो ही मेरी अब कसम हो गयी

तुझसे मिलने की ख्वाहिश अधूरी रही
शुरू हो न पाई कहानी खतम हो गयी

मुझसे लमहा सँभाला गया न वहाँ
मेरी वो ही खता अब सितम हो गयी

अब देखता हूँ क्षितिज को बड़े गौर से
उम्र की एक और शाम कम हो गयी

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