खुशियों का प्याला
मेरे देश तू हँसते रहना खुशियों का प्याला कम न हों।
गाँवों-गाँवों बस्ती-बस्ती सपनों की अँगड़ाई हो,
पलकों के हर कोरों में खुशियों की परछाईं हो।
हर सपनों को पृष्ठ मिले अक्षर की माला कम न हो,
चकाचौंध हो हर कोने में कहीं उजाला कम न हो।
हर घर के आँगन में पल-पल किलकारी की गूँज उठे,
सबके अधरों पर गीतों के रागों की अनुगूँज उठे।
गीतों के हर शब्दों में वर्णों की माला कम न हो,
चकाचौंध हो हर कोने में कहीं उजाला कम न हो।
पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण भारत का गुणगान रहे,
इस दुनिया से उस दुनिया तक केवल भारत नाम रहे।
हर भूखे का पेट भरे और कभी निवाला कम न हो,
चकाचौंध हो हर कोने में कहीं उजाला कम न हो।
मुक्त धरा हो अवसादों से कहीं कभी उन्माद न हो,
अधिकारों-कर्तव्यों के मध्य कोई वाद-विवाद न हो।
संबंधों की ड्योढ़ी पर कभी प्रेम पियाला कम न हो,
चकाचौंध हो हर कोने में कहीं उजाला कम न हो।
राष्ट्र प्रथम के भावों से गुंजित ये आकाश रहे,
भारत माता के चेहरे पर खुशियों का अनुप्रास रहे।
हर नयनों में स्वप्न सजे सपनों का पियाला कम न हो,
चकाचौंध हो हर कोने में कहीं उजाला कम न हो।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
14 अगस्त, 2024
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