मैंने रीत लिखे

मैंने रीत लिखे 


मैंने मर्यादित भावों से शब्द चुने फिर गीत लिखे
शिष्ट सृजन को पंथ बनाया तब जाकर कुछ गीत लिखे।।

सूरज से ली तपिश यहाँ पर चंदा से शीतलता ली।
लिया पवन से मुक्त भाव अरु तारों से चंचलता ली।
शब्दों का आलिंगन कर के अपने मन के मीत लिखे,
शिष्ट सृजन को पंथ बनाया तब जाकर कुछ गीत लिखे।

लिया पुष्प से खुशबू मैंने पातों से हरियाली ली।
अवनी से संबल पाया है अंबर की रखवाली ली।
पात-पात पिय पुष्प चुने तब प्रीत गढ़े नवगीत लिखे,
शिष्ट सृजन को पंथ बनाया तब जाकर कुछ गीत लिखे।

लिया प्रखर भावों को जग से अंतस में प्रिय भाव जगाया।
पल-पल बीते लम्हों से जो पाया गीतों में गाया।
जग से लेकर जग को देकर जग की प्रचलित रीत लिखे,
शिष्ट सृजन को पंथ बनाया तब जाकर कुछ गीत लिखे।

 ©️✍️अजय कुमार पाण्डेय

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...