हर सावन में आ जाती है बुआ घर की ड्योढ़ी तक



 हर सावन में आ जाती है बुआ घर की ड्योढ़ी तक

सदियों की सिलवट माथे पे चेहरे पर इक आस लिए,
हर सावन में आ जाती है बुआ घर की ड्योढ़ी तक।

केतनी कथा कहावत केतनी केतनो बात पुरानी हो,
केतनो यादें भूल जायें सब एक्को कहाँ भुलानी वो।
घर के कौनो बात चले बुआ के बिना अधूरी हौ,
चौखट पर सावन के बारिश उनके बिना न पूरी हौ।

बिना बात के बात निकाले नवके का अहसास लिए,
कनबतिया दुहरा जाती है दालानों की पौड़ी तक, 
हर सावन में आ जाती है बुआ घर की ड्योढ़ी तक।

माई-बाबू, भइया-भाभी से बात-बात पे रिसियईहैं,
उनके केउ अगर सुने ना तो देखत-देखत खिसियइहैं।
दुइ चार बूँद आँखिन में भरि के केतनी बात सुना देइहैं,
फिर अगले ही मौके पे दुसरे पे दोष लगा देइहैं।

एक जबानी गारी देइहैं दूसरे जबान मिठास लिए,
उनकी मुस्कानों से निकली जाती है जो त्यौरी तक,
हर सावन में आ जाती है बुआ घर की ड्योढ़ी तक।

आँखन में मोतिया पसरी हौ मुँह में दाँत नहीं एक्को,
घुटने भले बतास लगल हौ मुश्किल कदम चलल एक्को।
भले कमर केतनो झुक जाए भले सहारा लाठी हो,
धन दौलत अउर हीसा कूरा उनके बदे सब माटी हौ।

यहिं माटी में ऊ भी जन्मी बस इतना अधिकार लिए,
मन के कितनै रंग रंगाये दंतकथा की खौड़ी तक,
हर सावन में आ जाती है बुआ घर की ड्योढ़ी तक।

घर के कौनो मौका हो या भले तीज त्योहारी हो,
बुआ के काँधे पे लागत सगरो जिम्मेदारी हौ।
भतीज-भतीजिन के शादी में ऊ सबसे ज्यादा नाची है,
झोली में आशीष हौ जितना उनके खातिर बाँची है।

खोंईछा के चाउर में भरिकर जग के प्यार दुलार लिए,
हाथों की मेंहदी से लइ के मखमल की वर जौड़ी तक,
हर सावन में आ जाती है बुआ घर की ड्योढ़ी तक।

गुस्सा के मूरत हौ बुआ कब जाने भृकुटी तन जाए,
जइसे गोदी में ले लो तो पल भर में ही मन जाये।
घर के भीतर से बाहर तक उनकर ही अधिकार रहे,
अंतिम बात ओहि के माना भले नहीं स्वीकार रहे।

नइहर के हर बेचैनी में खुशियन के उपहार लिये,
धेला पैसा और जुगाड़े  सवा लाख की कौड़ी तक,
हर सावन में आ जाती है बुआ घर की ड्योढ़ी तक।

आपन सब कुछ छोड़ चली है प्रेम भाव बस मुट्ठी ले,
उम्र के अंतिम साँझ भले हौ लेकिन नाहीं छुट्टी ले।
अपने आँचल में लम्हों की यादें हर पल पाली हौ,
बुआ के आशीष प्रेम सब जात कबहुँ न खाली हौ।

साँझ ढले से पहले तन के दो बूँद प्रेम की प्यास लिये,
तारों का किमखाब दुपट्टा गोटा जारी चौड़ी तक,
हर सावन में आ जाती है बुआ घर की ड्योढ़ी तक।

 ©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        16 अगस्त, 2024





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