समर्पण-गीत की पँक्तियाँ

समर्पण- गीत की पँक्तियाँ

तुम ना मिलती तो भी मैं उस द्वार तक आता वहाँ,
तुमको समर्पित गीत की मैं पँक्तियाँ गाता वहाँ।

थे अधूरे गीत जो भी पूर्ण सब तुमसे हुए हैं,
गीत के हर शब्द सारे पांखुरी बन मन छुए हैं।
एक पुष्पित भाव का अनुरोध मन पल-पल पनपता,
नैन में पल-पल सनेही भाव का सागर छलकता।

गीत रचने तक प्रतीक्षा मैं द्वार पर करता वहाँ,
तुमको समर्पित गीत की मैं पँक्तियाँ गाता वहाँ।

भोर की पहली किरण से सांध्य की अंतिम किरण तक,
नेह का अनुरोध पलता आत्म के अंतिम मिलन तक।
पुण्यता के दीप में अनुरोध की बाती जलाता,
हों घनेरे धुंध गहरे दीप बनकर झिलमिलाता।

सांध्य की अंतिम किरण तक मैं साथ में आता वहाँ,
तुमको समर्पित गीत की मैं पँक्तियाँ गाता वहाँ।

है नहीं संभव हृदय की भावना से पार पाना,
चाहे रहे कितना जटिल नेह का बंधन निभाना।
जोड़ता हर तार मन से स्वयं को आहूत करता,
पंथ के हर कंटकों को नेह से ही दूर करता।

जब तक न मिटती दूरियाँ हर बार मैं आता वहाँ,
तुमको समर्पित गीत की मैं पँक्तियाँ गाता वहाँ।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        11 अगस्त, 2024

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