दीपक एक जला लेना

दीपक एक जला लेना

दुनिया के हर अँधियारे को साथी दूर भगा देना,
अँधियारा जब भी भरमाये दीपक एक जला लेना।

गीत न केवल लिखना साथी लहरों के आलिंगन के,
लिखो दर्द तटबंधों के प्रिय मिटते हर अनुबंधन के।
बलखाती लहरों में घुलकर तट को नहीं भुला देना,
अँधियारा जब भी भरमाये दीपक एक जला लेना।

कदम-कदम लाखों पहरे लाखों राह दिखाने वाले,
संबंधों की चौखट पर रिश्तों को समझाने वाले।
इस दुनियादारी में फँसकर तुम खुद को नहीं भुला देना,
अँधियारा जब भी भरमाये दीपक एक जला लेना।

पलकों के सपनों को यूँ ही व्यर्थ नहीं ढहने देना,
यादों के शीश महल में प्रिय कुछ सपने रहने देना।
सपनों को पाने की हठ में अपने नहीं भुला देना,
अँधियारा जब भी भरमाये दीपक एक जला लेना।

साँसों से अनुबंध हुए जो कभी नहीं वो कम करना,
औरों के आँसू से अपनी आँखों को भी नम करना।
हार गए जिन संबंधों को उनको नहीं भुला देना,
अँधियारा जब भी भरमाये दीपक एक जला लेना।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27 जुलाई, 2024

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