सारे व्याकरण में है नहीं
कैसे लिख दूँ गीतों में मैं प्यार के अहसास को
वो शब्द अरु वो भाव सारे व्याकरण में है नहीं।
यादें जब भी आँसू बनकर नैन से बहने लगे,
ये मान लेना गीतिका का बंध पूरा हो गया।
आहों की बदली में जब-जब ये हृदय घिरने लगे,
ये मान लेना आतमा का द्वंद पूरा हो गया।
अब कैसे लिख दूँ गीत में आँसू के अहसास के,
वो शब्द अरु वो भाव सारे व्याकरण में है नहीं।
जब भी मचलकर मन कभी ये प्रश्न खुद करने लगे,
ये मान लेना आतमा का कार्य पूरा हो गया।
जब कभी मन की गली के हर रासते मिलने लगें,
ये मान लेना रासतों का कार्य पूरा हो गया।
अब कैसे लिख दूँ गीत मैं मन के हर विन्यास के,
वो शब्द अरु वो भाव सारे व्याकरण में है नहीं।
यूँ ही कभी जब भींग जाये मन भाव के अहसास में,
मान लेना प्रीत का का अनुबंध पूरा हो गया।
जब बूँद पलकों से उतरकर स्वयं ही हँसने लगे,
ये मान लेना अश्रुओं का पंथ पूरा हो गया।
अब जो अलौकिक बात है इस अश्रु के अहसास में,
वो शब्द अरु वो भाव सारे व्याकरण में है नहीं।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
28 जुलाई, 2024
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