यूँ लग रहा उनकी गली का हर किवाड़ा बंद है
इंद्रधनुषी आसमां का हर रंग सारा मंद है,
यूँ लग रहा उनकी गली का हर किवाड़ा बंद है।
जूझती है जिंदगी अहसास के विस्मृत पलों में,
छल रही है बंदगी भी जो कभी थी हर दिलों में।
हर आस के अहसास का पुष्पित इशारा मंद है,
यूँ लग रहा उनकी गली का हर किवाड़ा बंद है।
थी कभी मधुमित नशीली ये रात जो बरसात में,
आधरों से थी टपकती मधु हर घड़ी हर बात में।
सूखे मधु के हैं प्याले या कुछ नया अनुबंध है,
यूँ लग रहा उनकी गली का हर किवाड़ा बंद है।
अब न वो सुरताल सारे और न वही संगीत है,
बस झूठ के पैबंद से मन सिल रहा हर प्रीत है।
अब प्रीत का अनुराग का जो था सहारा मंद है,
यूँ लग रहा उनकी गली का हर किवाड़ा बंद है।
मेरी पेशानी के बल से हँस रहे जिनके महल,
द्वार पर उनके नहीं है मेरी पेशानी का हल।
बूँद की अंतिम सियाही तक ही यहाँ संबन्ध है,
यूँ लग रहा उनकी गली का हर किवाड़ा बंद है।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
26 जुलाई, 2024
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