अधूरे स्वर

अधूरे स्वर

कितने मंजर नयनों में आकर पलकों को छल जायेंगे,
कितने स्वर अधरों पे आकर बिना कहे ही टल जायेंगे।

है जितना मुश्किल अनुमानों की राहों में खुलकर जाना,
है उतना मुश्किल दुविधाओं से जीवन का बाहर आना।
अनुमानों दुविधाओं के पल जब सपनों में मिल जायेंगे,
कितने स्वर अधरों पे आकर बिना कहे ही टल जायेंगे।

जितना मुश्किल इस जीवन में है वादा कर हँसते रहना,
उतना ही मुश्किल है पलकों के आँसू का कहते रहना।
हँसते आँसू जब अधरों के कंपन में घुल-मिल जायेंगे,
कितने स्वर अधरों पे आकर बिना कहे ही टल जायेंगे।

मन को माटी जैसा रखकर इस जीवन में रहना होगा,
जीना है यदि इस जीवन को सब धूप-छाँव सहना होगा।
जीवन तब इस धूप-छाँव में हँसते-हँसते पल जायेंगे,
कितने स्वर अधरों पे आकर बिना कहे ही टल जायेंगे।

जो जीवन भर बाधित स्वर ले निज आहों में जीता होगा,
हृद घट खंडित भावों से छल पल-पल कितना रीता होगा।
रीते अंक लिए आँसू फिर घावों को ना सिल पायेंगे,
कितने स्वर अधरों पे आकर बिना कहे ही टल जायेंगे।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        13जुलाई, 2024

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